Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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उपदेशपदार कुणेसु मा खेयं । हे ताय ! जेण झगडगमेयमहं चिय विहाडिस्सं ॥११४॥ तो तीए संलत्ता रायसुया जम्ह जो मए विषयामहाग्रंथः
सद्धि । जम्मंतरमणुसंधइ स तत्थ Yणं पई होइ ॥११५।। तो ललियंगेण भवंतरम्मि आरूढपोढपेमेण । एयंपि ह भ्यासाह पडिवन्नं णत्थि असज्झ सिणेहस्स ॥११६।। णीहारियाणि कट्ठाणि विरइया तह मसाणदेसम्मि । एगा चिया पविट्ठाणि
शिरणे शुक
शुकीउत्त दोवि पजालिओ जलणो ।।११७।। पुव्वंपि सुरंगाए तद्देसे विहियछन्नदाराए । (ग्रंथान० १३०००) अक्खय देहाणि
शरभवस्व ॥७८८॥ विणिग्गयाणि पताणि जणगंता ॥११८।। ललियंगएण सद्धि विहिओ वीवाहऊसवो रम्मो । सव्वम्मि पुरे तोसो जाओ
रूपयुतंय सुहावरिसतुल्लो ।।११९॥ पण्णविया पिउणा रायणंदणा सेसगा तओ तिण्णि । एगा कन्ना बहुयाण तुम्ह कह चरित्रम्जुज्जए दाउं? ।।१२०।। सट्ठाणगएस य सेसरायपुत्तेसु अच्छिउं तत्थ । दिवसाणि कइवि नवनवसंमाणनिहाणभूयाणि ।।१२१।। उम्मायतीसहिओ विसजिओ तेहिं जणयणयरम्म । सव्वत्तो विहियमहामहम्मि ललियंगओ पत्तो ॥१२२।। दिन्नं पिउणा रज सयं च पव्वजमुज्जलं पत्तो । गुरुया भागा भोगा जाया ललियगयस्सावि ।। १२३॥ पत्तम्मि सरयसमए उम्मीलियकमलकुमुयसोरन्भे। अइधवलमरालकुलुञ्जलासु सयलासुवि दिसासु ॥१२४॥ नियमंदिरोवरि गओ सहिओ देवीए पेच्छइ कयावि। सरयब्भखंडमुड्डीणतूल लवपेलवं पढमं ॥१२५।। तत्तो महंतगंगातरंगभंगावमं तमेव खणं । पच्छा सिसिरमहीहरसिहरागारं निभालेइ ॥१२६।। तो सयलंबरवित्थाररोहगं फुरियविजविज्जोयं । पेच्छंतस्स य एत्तो पयंडपवणाहयं संतं ॥१२७।। जायं दुखंडमित्तो तिखंडमह बहुदलं तओ पलयं । आमूलओवि पढम चितेउमिमं समाढत्तो ।।१२८।। एवं लच्छीओ माणवाण बहुणा किलेसनिवहेण । समुवज्जियाओ गरुयं कमेण वित्थारमागम्म ।।१२९॥
॥७८८॥

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