Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 383
________________ ।।७८९॥ दुव्वारवसणविया उ झत्ति निन्नासमेंति ता एत्तो। जुत्तो सुकयविसेसेा विसेसओ मे सयं काउं ॥१३०।। एवं चिंतापीऊसजलहिबुडस्स जा दिणा जंति। ता अन्नदिणे पडिहारसूइओ एइ वणवाला ॥१३१॥ भालयलनिहियकरकमलसंपुडो पणमिऊण भूनाहं । विष्णवइ देवजं अञ्ज तुम्ह तयणम्मि उजाणे ।।१३२।। नामेण य अत्थेण य मणोरमे गंधलुद्धभसरम्मि । बहलदलभारसाले तमालमालाखलियतावे ॥१३३।। सिरिहरनामा तित्थाहिनायगो जह सिरीए कुलभवणं । संपत्तो सयलसुरासुरिंदवंदिजमाणकमो ॥१३४।। वयणे जस्स विसुद्धादरिसयले इव गुणा य दव्वा य। पडिबिंबियव्व दीसंति जमगसमगं बुहजणाण ॥१३५।। जस्संगसंगयावि हु गुणा समग्गे जयम्मि वियरंति । हुंतावि अणंता तह लहंति | गणणं गुणिजणेसु ।।१३६।। जस्स पयपंसुपरिफंसणेण भूसियसिरोरुहा संता । सुरअसुरनरा न कुणंति वासचुन्नेसु अहिलासं ॥१३७।। तह तत्थ वणे जा कावि देवसोहा समागए तम्मि । जाया तन्नो वोत्तुं सत्तो हं कयपयत्तोवि ॥१३८॥ तहवि तुममेगचित्तो आयन्नसु नाह ! किंपि जंपेमि । जं तग्गुणतरलमणो मोणं काउं न तीरेमि ॥१३९।। अप्पत्तेवि वसंते तस्साइएहिं विम्हियमणव्व । रोमंचे चूयतरू अंकुरमिसेण मुंचंति ॥१४०॥ तस्साणुसंगगुणउव्व सोगतरुणोवलद्धपसमेण । नो सोढं फुल्लंतेण ताडणं तरुणिचरणस्स ॥१४।। बउलावि कयाणुव्वयगहणत्थ तयं निभालिउ जाया । जं बहुमइरागंडूसपाणमणवेक्खिउं फुल्ला ॥१४२॥ तं देव ! भूमितिलयं पेच्छिय तिलओवि विहसिओ सहसा । कस्स व न समाणगुणे दिटे संजायए हरिसो? ॥१४३।। जह सोहंति पलासा सव्वत्तो किंसुएहिं तम्मि वणे। तह जंबूतरुणोवि हु तरुणेहिं न कि सुएहिं पहू ? ॥१४४॥ जहसदं विहगरवेहि देव ! देवीए काणणसिरीए । दंतावलिव्व रेहइ कुंदतरूणसु ॥७८ SIL

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