Book Title: Updeshpad Mahagranth Satik Part 02
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 379
________________ ॥७८ ॥ शि॥६५॥ तस्सासणत्थमइभूरिरोसपसरो समग्गसेणाए। पलयानिललोलियजलहिसलिलकल्लोलदुद्धरिसो ॥६६॥ पत्तो य देससीमाए लग्गमाओहणं महाघोरं । छलघायगेण रिउणा उवणीओ कहवि निहणमिमो ॥६७।। जणगपएसं ठविओ तत्तो निहिकुंडलो परियणेण । णिद्धपयावहुयासणभासीकयसयलसत्तुगणो ।।६८॥ कइयाइ णंदिवद्धणणामा सूरी समोसढो | तत्थ । सो गउरवेण महया गओ तदंते सपरिवारो ॥६९।। दिट्ठो सूरी अभिवंदिओ य रोमंचकंचुयंगेण । निसुओ धम्मो कन्नामओवमो सायरमणेण ॥७०।। जह णयमाण पडलाणमवगमे ज्झत्ति कोवि पेच्छेइ । तह मोहपडलविलए स तत्तमवलोइउं लग्गो ॥७१।। पडिवन्नो वा समणोवासगधम्मो पुरंदरजसाए । सद्धि अलुद्ध बुद्धो पायं भोगेसु संजाओ ॥७२।। जाओ पडिपुन जसो कालेण सुओ निहाणमणहाणं । गुणरयणाण सेसि खीरोयजलुज्जल जसोहो ॥७४॥ जम्म तरजिणपूयापरिणामुब्भव विसुद्धसद्धाए । कारे इ जिणाययणं सुरगिरितुंगं तओ रम्मं ॥७४॥ पुण्णाणुबंधिपुण्णाणुभावओ अह कयाइ तित्थयरो । णामेण सुमइणाहो तत्थायाओ मुणिसणाहो ।।७५॥ तव्वयणामयधारानिवायनिव्ववियविसयविसदाहो । पव्वज्जमुञ्जलं काउमुजओ ठवइ निययपए ॥७६॥ पुत्तं पवित्तविहिणा काऊण जहोचियाई कब्जाई। सावजकज्जभीरू एस सभजो विणिक्खंतो ।।७।। परिवालियतिव्ववओ तवोविहीऽणेगहा करेऊण । पजंतसमाहिपरो कालं काऊण सोहम्मे ।।७८।। उववण्णो देवो देवभोगभूमीए भायणं जाओ । सावि य पुरंदरजसा जाया तत्थेव तद्देवी पंचपलिओवमाइं आउं तत्थच्छिउँ तओ देवो । पुव्वविदेहे पुंडरिगिणीए एत्थेव दीवम्मि ॥८०॥ निवचंदणवइणो भारियाए सिरिचंदणामधेयाए । एरावणवारणसुमिणसूइओ सो सुओ जाओ ॥८१॥ ललियंगो से णामं ठवियं कलियाओ तह ॥७८५॥

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