Book Title: Upasakdasha Shrutam Author(s): Abhaydevsuri Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ है। मज्झं मज्झेणं निगच्छइ, निगच्छइत्ता जेणामेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उ वागच्छइ, उवागच्छइत्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेइत्ता वन्दइ नमसइ जाव पज्जुवासइ॥ है। १०॥ तए णं समणे भगवं महावीरे आणन्दस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव ध ग्मकहा । परिसा पडिगया राया य गए ॥ ११ ॥ तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महा- BI 8 दीररस अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव एवं वयासी । सद्दहामि णं भन्ते ! निग्गन्धं पावयणं, 18 | पत्तियामि णं भन्ते ! निग्गन्थं पावयणं, रोएमि णं भन्ते ! निग्गन्धं पावयणं, एवमेयं भन्ते ! तहमेयं भ| न्ते ! अवितहमेयं भन्ते ! इच्छियमेयं भन्ते ! पडिच्छियमेयं भन्ते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भन्ते ! से जहेयं ल 3 तुझे वयह ति कटु, जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे राईसरतलवरमाडम्बियकोडुम्बियसेट्ठिसस्थवा६ हप्पभिइया मुण्डा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुण्डे जाव पवहै। इत्तए । अहण्णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पञ्चाणुवइयं सत्तसिखावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिहै। स्सामि । अहासुहं देवाणप्पिया मा पडिबन्धं करेह ॥ १२ ॥ तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भग KिASBAERASAIREPage Navigation
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