Book Title: Upasakdasha Shrutam Author(s): Abhaydevsuri Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 6
________________ उपासक णं कुडुम्बस्स मेढी, पमाणं, आहारे, आलम्बणं, चक्खू, मेढीभूए जाव सबकज्जवड्डावए यावि होत्था ॥५॥ दशाङ्गम् तस्स गं आणन्दस्स गाहावइस्स सिवनन्दा नाम भारिया होत्था, अहीण जाव सुरूवा । आणन्दस्स गा. हावइस्स इट्ठा, आणन्देणं गाहावइणा सद्धिं अणुरत्ता अविरत्ता इट्ठा, सद्द जाव पञ्चविहे माणुस्सए का. मभोए पञ्चणुभवमाणी विहरइ ॥ ६॥ तस्स णं वाणियगामस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसोभाए एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था, रिद्धस्थिमिय जाव पासादिए ४ ॥ ७ ॥ तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे आणन्दस्स गाहावइस्स बहुए मित्तनाइनियगसयणसम्बन्धिपरिजणे परिवसइ, अड्डे जाव अपरिभूए ॥ ८ ॥ ते काले गं तेगं समए गं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए, परिसा निग्गया, कूणिए राया जहा तहा जियसत्त निगच्छइ, निगच्छइत्ता जाव पज्जुरासइ ॥९॥ तए णं से आणन्दे गाहावई इमोसे कहाए लट्ठ समाणे. एवं खलु समणे जाव विहरइ. तं महाफलं. गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि एवं सम्पेहेइ, सम्पहे. इत्ता पहाए, सुद्रप्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घाभरणालङ्गियसरीर सयाओ गिहाओ पडिनिक्ग्वमइ, पडिनिकग्वमइत्ता सकारेण्टमल्लदामे गं छत्तेज धरिजमाणे मणुम्सवग्गुरापरिखित्ते पायविहारचारेणं वाणियगामं नयरं ॥२॥ SONGSPage Navigation
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