Book Title: Upasak Anand
Author(s): Amarmuni, Vijaymuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 10
________________ पूज्य माता तथा पिता की पुण्य स्मृति में परम योगी, परम विद्वान्, प्रखर चारित्रधनी और तेजस्वी व्यक्तित्व परम गुरु पूज्य प्रवर रत्न चन्द्र जी महाराज अपने युग के एक महान् साधक सन्त थे। आगरां लोहामंडी श्री श्वेताम्बर स्थानक वासी जैन लोहिया श्री संघ पर आपकी अपार कृपा की वर्षा थी। लोहामंडी आपकी पावन साधना भूमि और अन्तिम संलेखना भूमि रही है। यहाँ के कण-कण में, रज-रज में, आपके तपः पूत एवं परम पावन जीवन में अनन्त आस्था तथा श्रद्धा रही है। आपके उपदेशों का अमृत पान करके लोहामंडी आगरा के श्वेताम्बर, स्थानक वासी, जैन लोहिया श्री संघ ने प्राचीन युग से लेकर आज तक आपकी पुण्यवती स्मृति में अनेक संस्थाओं की संस्थापना की है, जैसे कि श्री रत्नमुनि माध्यमिक बाल विद्यालय, तथा श्री रत्नमुनि माध्यमिक कन्या विद्यालय। बगीची, छत्री, पौषधशाला और शिशु विद्यालय आदि-आदि। आज भी यहाँ पर स्थानक वासी जैन लोहिया श्री संघ आपके चमत्कारी व्यक्तित्व में अगाध आस्था और अनन्त श्रद्धा के भाव रखता है। ____ आपके श्रावकों में लाला शहजाद लाल जी और श्राविकाओं में श्रीमती विद्या जी धर्म पत्नी श्रीमान् शहजाद लाल जी का नाम मुख्य माना जाता है। परम गुरु के आप दोनों परम भक्त थे। साधु-सन्तों की सेवा-भक्ति करने में, आप दोनों पति-पत्नी सदा अग्रसर रहते थे। धर्म में आपका अटूट विश्वास था। दीन-हीन जनों की सहायता सदा करते रहते थे। पूज्य गुरुदेव उपाध्याय, राष्ट्र-सन्त, अमर मुनि जी द्वारा राजगृही विहार में संस्थापित वीरायतन में, उसके निर्माण में, आपने और आपके समस्त परिवार में उन्मुक्त हाथों से समय-समय पर पूरा सहयोग एवं क्रियात्मक कार्य किया है। श्रीमती विद्या जी समय-समय पर आगरा एवं कलकत्ता से आकर काफी समय तक वीरायतन में रहकर, वहाँ सेवा कार्य करती रही हैं। अपने पुत्र तथा पुत्र-वधुओं को भी प्रेरणा देकर, वीरायतन के निर्माण कार्य कराती रही हैं। पूज्य गुरुदेव, राष्ट्र-सन्त उपाध्याय अमर मुनिजी का जरा-सा संकेत पाकर आप एवं आपके आज्ञाकारी पुत्र, गुरुदेव की सेवा में जा पहुँचते थे। अत: वीरायतन में आपकी स्मृति सदा बनी रहेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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