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गुरुणी म. के गुणगान
0 साध्वी उम्मेवकुब रजी
[तर्ज—थांरि मुरली मनड़ो : यो"] थारो दर्शन मनड़ो मोह्यो गुरणी सा,
बलि बलि जावां थांरा दर्शन री ॥टेर।। मां अनुपा की कोख उजाली,
उत्तराखण्ड पंजाब हिमाचल, तातेड़ों की गोत पुजाली ।
काश्मीर मरुधर के अंचल । जन जन के मन भाया ।।
धर्म का रंग चढ़ाया ।। गुरणी सा ॥१॥
गुरणी सा ॥५॥ मांगीलालजी तात कहाया;
दुर्लभ दर्शन थांरो पायो, संग ले संयम तनको ताया।
निरख-निरख मन मोद भरायो । सद गुण सभी सराह्या ।। सुरुतरु प्रांगण छाया ।। गुरणी सा ॥२॥
सा ॥६॥ जन्मभूमि है गांव दादिया,
उमरावकुंवर महीमा मही मण्डन बन कुल वधु दोराई आया।
उपनाम 'अर्चना' पातक खण्डन । हींगड़ कुल चमकाया ।।
साधना में जीवन रमाया ।। गुरणी सा ॥३॥
गुरणी सा ।।७।। सरदारकुंवरजी की चरण शरण में, गुण अनेक पर जीभ एक है, शान्ति मिली मन के कण कण में ।
पार उतारो यही टेक है। हृदय कमल विकसाया ।। श्वास श्वास में बसाया ।। गुरणी सा ।।४।।
गुरणी सा ।।८।।
दोय हजार सत्ताइस पाया, विजयनगर चौमासा ठाया। सती उम्मेद, हरष गुण गाया।।
गुरणी सा ॥९॥
आई घड़ी अभिनंदन की चरण कमल के वंदन की
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