Book Title: Tulsi Prajna 1997 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ पर्यावरण-सुरक्षा, जैन-दर्शन के परिप्रेक्ष्य में भोपालचंद लोढा आज सारा संसार पर्यावरण को बचाने के लिये चिन्तित है, क्योंकि यह जीवन का आधार है । सुरक्षित पर्यावरण के लिये जैविक संतुलन- जो प्राकृतिक है व जैविक सहअस्तित्व-जो मानव को अपनाना होता है, आवश्यक है। मनुष्य की एक बहुत बड़ी कमजोरी यह है कि जो उसे आवश्यक लगता है, उसे बचाता है या उसका संग्रह करता है, लेकिन जो कुछ उसे परोक्ष रूप में भी अनावश्यक लगता है, उसके नष्ट होने की उसे चिंता नहीं होती, वरन् उसके नाश का वह मुख्य कारक भी बन जाता है। आज वृक्षों को बचाने का, नये वृक्ष लगाने का वातावरण है । मोटे तौर पर वृक्षों को बचाने की बात स्थूल वातावरण (Macro climate) को बचाने के ध्येय से आम मनुष्य सोचता है, लेकिन वृक्षों के ह्रास के दुष्प्रभाव सिर्फ स्थूल वातावरण के बचाने से भी कहीं ज्यादा विस्तृत हैं । कुछ मोटे उदाहरणों के तौर पर वृक्षों के तनों में कई विशिष्ट प्रकार के जीव, तनों के अन्दर के वातावरण व संरक्षण में रहते हैं। "Endophytic fungi" (कव) उनमें से एक हैं, जिसका ज्ञान अभी हाल ही के वर्षों में हुआ है । ये वृक्षों को कोई हानि नहीं पहुंचाती, लेकिन इनकी उपयोगिता के बारे में अभी हमारी कोई जानकारी नहीं है । इतना अवश्य मालूम है कि इनकी बहुत किस्में हैं । वृक्षों के नष्ट होने के साथ ये कवकें भी और अन्य जीवों के साथ नष्ट होती हैं व इनकी कई दुर्लभ प्रजातियां, हो सकता है, ये पृथ्वी सदा के लिये खो दे। __ आम तौर पर जीवों की वे प्रजातियां, जो बीमारी फैलाती है, विशेषत: उन जीवों व मानवों में जिनकी रक्षा का हमें विशेष ध्यान रहता है, उन बीमारी फैलाने वाली प्रजातियों को आज भी जहरीली दबाओं से नष्ट कर रहे हैं। ऐसा करते समय हम यह कोशिश करते हैं कि इन प्रजातियों को हमेशा के लिये पूर्णतः नष्ट कर दें। ऐसा हम इसलिये करते हैं कि हमने आज तक इनके नुकसान देयी अवगुणों का ही पता लगाया है, लेकिन इनमें भी क्या गुण छिपे हैं, इसका ज्ञान हमें नही है। सच्चाई तो यह है कि इस धरती पर जितने जीव हैं. उनकी जानकारी हमें शायद पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। और उस पांच प्रतिशत के बारे में, जिसकी जानकरी है, वह भी शायद हमें पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। इस संदर्भ में ये ध्यान देने योग्य बात है कि जिसे हम आज अनावश्यक या नुकसानदायक समझ कर नष्ट कर देते हैं, इसमें छुपे गुणों का कल क्या उपयोग हो सकता है, खंड-२३, अंक-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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