Book Title: Tulsi Prajna 1997 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ पाश्चात्य जगत् के प्रसिद्ध दार्शनिक कांट की तरह आचार्य भिक्षु ने यहां विचार और व्यवहार में क्रांति का सूत्रपात किया । आचार्य जय ने उसे शब्द और अर्थ प्रदान किया और विपुल साहित्य रचा जबकि आचार्य तुलसी ने उस मंत्र को साधकर लोकोपकार के अनेकों अभूतपूर्व कार्य कर डाले 1 सचमुच स्वाधीनता के इस स्वर्ण जयंती वर्ष में आचार्य तुलसी के विगत पचास वर्षों की सेवा का मूल्यांकन करें तो वे राष्ट्रीय संत की कोटि में आते हैं और मानव सेवा के प्रति किया उनका कार्य किसी जैनाचार्य की जैन सेवा नहीं विशुद्ध जनसेवा का अतुलनीय कार्य है । पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् ने उन्हें देश का विशिष्ट सेवक माना, ज्ञानी जैलसिंह ने उन्हें युगप्रधान का गौरव प्रदान किया और निर्वासित तिब्बती धर्म राजा महामहिम दलाई लामा ने उन्हें वाक्पति का अलंकरण दिया । और भी अनेकों सम्मान आचार्य तुलसी को मिले हैं । वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ ने सर्वावसान के इस मौके पर महाश्रमण मुदित मुनि को युवाचार्य का पद सौंपा है और जैन विश्व भारती संस्थान को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय गौरव प्रदान करने के लिए विविधानेक प्रयोजनाएं शुरू की हैं । जीवन विज्ञान, अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान के तीन अंगों से बने आधार पर आचार्य महाप्रज्ञ ने जनसेवा की जो अभिनव परियोजनाएं शुरू करने का मानस बनाया है वे निस्संदेह फलीभूत होंगी और तेरापंथ महासंघ वस्तुतः तेरा - जनसाधारण का, मानवमात्र का उत्तरोत्तर कल्याण करता रहेगा । - परमेश्वर सोलंकी खंड २३, अक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only ७ www.jainelibrary.org

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