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मिथ्यादृष्टि के लिए स्व-समय भी मिथ्याश्रुत है । इस प्रकार परख दृष्टि के कारण भी आगमों में प्रमाणता आती है । कुंदकुंद के संशय, विमोह, विभ्रम-रहितता के आचार के साथ दृष्टि परखता ने प्रामाणिकता के आधारों को बलवत्तर बनाया है । ये आधार पूर्वापर-दोष रहितता के ही पुनः संस्करण हैं । यह परखदृष्टि कुंदकुंद द्वारा ज्ञान के क्षेत्र में महान योगदान है। उपसंहार
उपरोक्त विवेचन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं : १. कुंदकुंद के अनुसार आगम का परमार्थ विषय अध्यात्म है । अपर विषय इसका
प्रासंगिक रूप है। अध्यात्मवर्धन की प्रामाणिकता वक्ता और श्रोता के गुणों पर निर्भर करती है पर उसके अपर-विषय वर्णन की प्रामाणिकता हेतुवादी परीक्षा
पर निर्भर करती है। २. कुंदकुंद महान् अध्यात्मविज्ञानी और वैज्ञानिक थे। उन्होंने पूर्वापर-दोष-रहितता
के माध्यम से युक्तिशास्त्राविरोधिता एवं संभव-बाधक-प्रमाणाभावता के परीक्षण गुणों को अपने शास्त्रों में समाहित कर हमें स्वयं भी वैज्ञानिक पद्धति के अनुसरण की प्रेरण दी है। कुंदकुंद के अध्ययन के समय उनकी इस प्रेरक प्रेरणा का
भी प्रचार करना चाहिए। ३. ऐतिहासिक दृष्टिकोण तथा अन्य शास्त्रीय विवरणों की संगतता के अभाव में कुंदकुंद के प्रति आस्था-विचलन किचित् स्वाभाविक है। अध्यात्म के प्रति आस्था को बलवती बनाने के लिए विसंगतियों की परीक्षा आवश्यक है। .
सन्दर्भ १. (अ) आर्यरक्षित स्थविर, अनुयोगद्वार सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, १९८७
पेज ३८-३९ (ब) उमास्वाति आचार्य, सभाष्य तत्वार्थाधिगम सूत्र, रायचन्द्र आश्रम, अगास,
१९३२, पेज ४२ २. कुंदकुंदाचार्य, समयसार, अजिताश्रम, लखनऊ, १९३०, पेज २ ३. कुंदकुंदाचार्य, प्रवचनसार, पाटनी ग्रंथमाला, मारोठ, १९५०, पेज २८३-२९४ ४. देखो, संदर्भ २ पेज ८, संदर्भ, ३ पेज ३८ ५. देखो, संदर्भ ३, पेज ९७ ६. युवाचार्य महाप्रज्ञ , दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन, तेरापंथी महासभा,
कलकत्ता, १९६७, पेज ४-५ ७. आप्टे, व्ही० एस०, स्टूडेन्टस संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी, मोतीलाल बनारसीदास
दिल्ली १९८६, पेज ५६६ ८. बट्टकेर आचार्य, मूलाचार-१, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, १९८४. पेज १२३ ९. न्याया'चार्य, महेन्द्र कुमार, जैन दर्शन, वर्णी ग्रन्थमाला, काशी, १९६६, - पेज ३५४-५६
खण्ड २१, अंक १
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