Book Title: Tirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 2
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Shantisagar Chhani Granthamala
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चाहिये और कैसे वार्तालाप करना चाहिये आदि विषयोंका कथन किया गया है। दूसरे सूत्रसालले २६,४१० पदों द्वारा नादिरय, प्रज्ञापना, कल्प्यअकल्प्य, छेदोपस्थापना आदि व्यवहारधर्मको क्रियाओंका वर्णन है तथा इस अंगमें स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्तका कथन भी समाविष्ट है। तृतीय स्थानांगमें ४२,००० पद होते हैं। इसमें एकसे लेकर उत्तरोत्तर एक-एक अधिक स्थानोंका निरूपण किया जाता है। यथा-अपने चैतन्यस्वभायके कारण जीवद्रव्य एक है; ज्ञान और दर्शनके भेदसे दो प्रकारका है। कर्मफलचेतना, कमचेतना और ज्ञानचेतनाको अपेक्षा यह तीन प्रकारका है । अथवा उत्पाद, व्यय और प्रौव्यकी अपेक्षा तोन भेदरूप है। चार गतियोंमें भ्रमण करने वाला होनेसे चार भेदवाला है । औदयिक आदि पाँच भाबसे युक्त होनेके कारण, इसके पास भेद हैं । भवान्तरमें गमन करते समय पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व एवं अधः इस प्रकार षटअपक्रमसे युक्त होने के कारण षट् प्रकारका है। अस्ति, नास्ति आदि सप्तभंगोंसे युक्त होनेके कारण सात भेदवाला है। शानावरण, दर्शनावरण आदि कोके आस्रवसे युक्त होनेको अपेक्षा जीवके आठ भेद हैं। जीव, अजीव आदि नौ पदार्थरूप परिणमन करनेके कारण यह नौ प्रकारका है । पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, प्रत्येक वनस्पतिकायिक, साधारणवनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय जाति, श्रीन्द्रिय जासि, चतुरिन्द्रिय तथा पञ्चेन्द्रिय जासिके भेदसे दस प्रकारका है। इस प्रकार जीवादि पदार्थोके एकाधिक भेदोंका निरूपण स्थानांगमें किया गया है।
चतुर्थ समवायांगमें १,६४००० पद, होते हैं । इसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप समवायका चित्रण किया गया है 1 द्रव्यसमवायकी अपेक्षा धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीवके प्रदेश समान हैं। क्षेत्रसमवायको अपेक्षा प्रथम नरकके प्रथम पटलका सीमन्सविल, मनुष्यलोक, प्रथम स्वर्गकप्रथम पटलका ऋजु विमान और सिद्धक्षेत्र इन सबका विस्तार तुल्य है। कालकी अपेक्षा उत्सपिणी और अवसर्पिणी कालगणनाएं तुल्य हैं। भावकी अपेक्षा क्षायिकसम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और यथाख्यातचारित्र समान हैं । इस प्रकार समानताको अपेक्षा जीवादि पदार्थोके समवायका वर्णन समवायांगमें उपलब्ध होता है ।
व्याख्याप्रज्ञप्ति अंगमें २,२८००० पद होते हैं । इसमें ६०,००० प्रश्नों द्वारा जीव, अजीव आदि पदार्थोंका विवेचन किया जाता है। ज्ञातृधर्मकथा नामक अंगमें ५,५६००० पद होते हैं । इसमें तीर्थंकरोंको धर्मदेशना, विविध प्रश्नोत्तर एवं पुण्यपुरुषोंके आख्यान वर्णित है। उपासकाध्ययन अंगमें ११,७०,००० पद
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ११