Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 20
________________ तीर्थ माला संग्रह १३ यहां पर भगवान के तीन कल्याणक होने के कारण से ही मन्त्रीश्वर वस्तुपाल ने सज्जनों के हृदय को चमत्कृत करने वाला तीन कल्याणक मंदिर बनवाया । जिन प्रतिमाओं से भरे इस इन्द्र मण्डप में रहे हुए भगवान नेमिनाथ स्नपन कराने वाले पुरुष इन्द्र की शोभा पाते हैं । इस पर्वत की चोटी को गजेन्द्र-पद- नामक कुण्ड, जो अमृत के से जलसे भरा और स्नपनीय जिन प्रतिमाओं का स्नपन कराने में समर्थ हैं—भूषित कर रहा है । यहाँ वस्तुपाल, द्वारा कारित शत्रुञ्जयावतार विहार में भगवान ऋषभ देव गणधर पुण्डरीक स्वामी अष्टापद- चैत्य, तथा नन्दीश्वर चैत्य यात्रियों के लिए दर्शनीय चीज हैं । इस पर्वत पर सुवर्ण की कान्तिवाली, सिंहवाहनपर प्रारूढ़ सिद्ध-बुद्ध नामक अपने पूर्व भविक दो पुत्रों को साथ लिए कमनीय ग्रामकी लुम्ब जिसके हाथ में है, ऐसी अम्बा देवी यहाँ रही हुई संघ के विघ्नों का विनाश करती है । उज्जयन्त तीर्थ सम्बन्धी उक्त प्रकार के पौराणिक तथा ऐतिहासिक वृत्तान्त बहुतेरे मिलते हैं, परन्तु उनके विवेचन का यह योग्य स्थल नहीं, हम इसका विवेचन यहीं समाप्त करते हैं । (३) गजाग्रपद तीर्थ गजाग्रपद भी आचारांग निर्युक्ति निर्दिष्ट तीर्थों में से एक है, परन्तु वर्तमान काल में व्यवच्छिन्न हो चुका है, इसकी अवस्थिति सूत्रों में दशार्णंपुर नगर के समीपवर्ती दशार्ण- कूट पर बताई गई | आवश्यक चूरिंग में भी इस तीर्थ को दशार्ण देश के दशार्णपुर के समीपवर्ती पहाड़ी तीर्थ लिखा है । और इसकी उत्पत्ती का वर्णन भी दिया है, जिसका संक्षेप सार नीचे दिया जाता है । एक समय श्रमण भगवान महावीर विचरते हुए अपने श्रमण संघ के साथ दशार्णपुर के समीपवर्ती एक उपवन में पधारे । राजा दशार्णभद्र को उद्यान पालक ने भगवान के पधारने की बधाई दी । श्री भगवान का आगमन सुनकर राजा बहुत ही हर्षित हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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