Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 85
________________ ॥ श्री॥ श्री तपा गच्छ एवं खरतर गच्छ के शत्रुजय पर अधिकार संबंधी दोहा सरस्वती माता मानिहे, करूं कौतुक इक बात । भट्टारक बेहुँ भिड्या, ते अांखु अवदान ॥१॥ वैरागी सन्यासीयाँ, जुडतां पहेला जंग। जैन तणा जालम यति, अडिया प्राय अभंग ॥२॥ तप गच्छ नायक तौरसु, यति बहुल निज जांण । मन मांहे मोटी मद्धरे, पंचम काल प्रमाण ॥३॥ खरतर गच्छ नायक निपुण, पंडित प्रौढ प्रवीण । मति सागर महिमा अधिक, सकल कलासु कुलीण ॥४॥ शत्रुजय गिरनार गिर, तोरथ जैन जगोस । भाव सहित भेटण भणि, आव्या मुनिना ईश ॥५॥ पालीतांणे पुण्य थो, पाव धरया पटधार । तेहवे तप गच्छ नायके, कह्यो संदेसो सार ॥६॥ एहज तीरथ ऊपरें, हुकम हमारा होय । तब चढज्यो निस्संक तुम, जब लग बेठो जाय ॥७॥ यों कहि आयो आपसु, जमात यतीरी जोय । ज्बैपण मुनिवर उठीया, आप तणे बलदोय ॥८॥ छंद भुजंगीमुनिऊठीया मोकले मन्न माझी, झगड्डाकरे वाच ढीरी सजाझी । उभे सैन्य सांजा तणी सज्झि आई, जथो बत्थ आया करवा लडाई ॥१॥ लिया हाथ डांडा खटाखट्ट खेले, ....."ह पांमे झटा झट्ट झेले । बिन्हे सैन्य सांजा बीये मार दोटां, __ लताडे पछाडे किया लोट पोंटों ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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