Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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तीर्थ माला संग्रह
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केसर वनराइ संजती, गई भालि गुरु पासि ।।म.॥ गंगा तट व्रत ऊचरि, द्रूपदी पीहर वासि ।।म. पू.॥१२०।। सुर पूजइ सूरी पुरि, सामल वरण उ नेमि ।।म.।। चंद्र प्रभ चंदन वाडी मां, रपडी राखू प्रेम ।।म. पू॥१२१॥ हथिणाउरि हरषी हिऊ, शांति कुथु अर जनम ।।म.॥ आगरा थी दिशि ऊतरि, दउ ढसउ के मरम ।म. पू.॥१२२॥
पांडव पांच इहां हुआ, पांच हुआ चक्रवति ॥म.:। पांच नमु थुण (अ) थापनां, पांच नमू जिन मूर्ति ।।म. पू.॥१२३॥ अहिछतइ उत्तम नमइं, मथुरागढ ग्वालेर ।।म.॥ उजल गिरि विमला चलू, दिल्ली जैसलमेरु ।।म. पू.॥१२४॥ चंद्र प्रभ चिंता हरी, मालपुरी मन लाडि ॥म.॥ सुख साखी संखेसर, थंभण बंभण वाडि ।म. पू.॥१२५॥ राणिगपुर रुलियामणं, वर दीई वरकांण म.॥ आबू पारासरिण नमू, फल विधि सफल मंडाण ।।म. पू.॥१२६॥ ते म्हइं तीरथ सांकल्या, नयणि जिहाल्यां जेह ॥म.॥ महि अलि अवरि अनेक छे, नमो नमो मुज तेह ॥म. पू.।।१२७॥ तीरथ सेवा जु फलि, तउ याचु जगदीस म.॥ सुलह बोही तउ हुं हुओ, रमज्यो तुम्ह पाय ईस ॥म. पू.॥१२८।। विनय करी करु वंदना, हुज्यो हिसाए देव । म.।। सुहाए खमाए जिनतणी, निस्सेयसाए सेव ॥म. पू.॥१२६॥ अणुगामी फल ए हुज्यो, जनमि जनमि उपगार म.।। तीरथ माल सफली फलउ, शतशाखा परिवार । म. पू.।।१३०।। इति तीर्थमाला अति रसाला पूर्व उत्तर वर्णवी । समकित वेली सुरिण सहेली सफल फली नव पल्लवी ॥
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