Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 92
________________ तीर्थ माला संग्रह प्रभुजी ने जमणे जोईई', अष्टापट देहरु । च्यार आठ दस दोय में, हैं प्रणम् सवेरु ।।५८॥ जिननी डावी दिसा लहू, देहरे चोमुख वारुं। च्यार जिणेसर तेहमां, नित उठी जुहार ॥५६॥ संग्राम सोनी ने देहरें, कोरणीनी जुगत । मोटो मंडप मांडियो, केती कहूं विगत ॥६०।। तेहमां सहस फणा प्रभु, एक छे महाराजा। पाछल जोधपुरी भलो, अमरचन्द छ ताजा ॥६१॥ तेहनें देहरें एक छे, जिनजी सुखकारा । तेह थी उत्तर देहरे, जिन एक सुधारा ॥६२।। पाछल गजपद कुन्ड छ, जुओ दृष्टि निहाली। तिहां जिन पडिमा एक छे, कून्ड' ने थंभ भाली ॥६३।। आगल केकी कुन्ड छे, में नयणे रे निरख्यो । गिरिथानक सहू निरखतां, बहु आतम हरख्यो ॥६४॥ मेलग बसहीइ सोल छे, जिन मंदिर मोटां । एक सो बत्रीस में गण्यां, देहरां सवि छोटां ॥६५॥ सर्व मली देहरा देहरी, एक सौ अडतालीस । तेहमां प्रभुजी च्यार सें, ऊपर वलि बत्रीस ॥६६।। नेम ने वंदी चालीई, सहसावन जई इ। वस्तुपाल ना देहरा, पाछल थई वही इं॥६७।। ऊपर चढतां दक्षणे, राजीमती गुफाई। ऐसी राजीमती वंदीइ, रहनेमि उछाहे ॥६॥ वंदी पागल चालीई, प्रावी गौमुखि गंगा। तिहां चोवीस जिणंद नां, पगलां सुख संगा ॥६६॥ प्रणमी पागल चालतां, पान्यो झपापात । ते थांनक दोय देहरी, सुन्दर विख्यात ॥७०॥ तिहां पगलां रामानंदीनां, जोडे नेमानंदी। आगल ईश्वरदासनाँ पगलां सहु फंदी ॥७१।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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