Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 105
________________ ९८ आज भलो त कु राखी यस जग उद्धरिया ॥३॥श्राज भलो. तीर्थ माला संग्रह सेवकनी प्रभु वीनती, चित्त मांहे अव धारो। अवर दिलासा दिजीई ओ भव पार उतारो ॥३॥आज भलो. वामा जी को नंदलो, पारस जग उद्धरियो। सेव किरति कु राखी ये, चरणांसु नेहडो ॥४॥आज भलो. आज भलो दिन उगीयो, पायो दरसण तेहरो ।इति तवन सम्पूर्णम्।। अथ तवन लिख्यतेतुमतो भले विराजो जी सांवलिया माराज, सीखर पर भले विराजोजी। उछा नीछा परबत सोहे, तले भीलन का वासा ॥१॥तुमतो. पेर पेर पर सिंह धडु के, जिहां लिया प्रभुवासा ।।२।।तुमतो. तेरे घाटे चोकी लागे, पूजा आंगि रचावे। हुकम करे श्री पास जिनेसर बांह पकर ले जावे ॥३॥तुमतो. टुक टुक पर धजा विराजे, झालर रा झणकारा । झालररा झणकारा सेती वाजे अविचल वाजा ॥४॥तुमतो. देस देस ना संघवी प्रावे, पूजा प्रांगण रचावे । अष्ट द्रव्य पूजामे ल्यावे, मन वांछित फल पावे ॥५॥तुमतो. सुर नर मुनीवर वंदण आवे, महा परम सुख पावे । छंद खुशाल चरण सेवक, हर्ष हर्ष गुण गावे ।६।तुमतो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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