Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 112
________________ तीर्थं माला संग्रह वानर वन जन मन खुसी, तिहां खेलई खिणमात्रो जो । परगट दिक पट देहरइं, बैकुंठ पुरीकरि जात्रो जी ॥ ४७ ॥ श्री ॥ कोस इग्यार विहार पुरि तिहां नमुं त्रिरण चैत्यो जी । एक दिगंबर देहरु, दूरि करूं दुख देत्यो ॥ ४८ ॥ श्री ॥ कोस त्रिअ तिहां थकी, पावा पुरीय प्रसिद्धो जी । जल थल थूभ तिहां भला. १०५ " जिहां जल तिहां जिन सिद्धो जी ॥ ४६ ॥ श्री ॥ बार जोयण जंभीगाम थी, देव कीधउ उद्योतो जी । त्रिगढइ बीजि प्रगडा समयइ, इणि पुरि वीर पहोतो जी ॥ ५० ॥ श्री ॥ इणि परि बहु प्रतिबूजव्या बांभरण सई चउमालो जी । गोयम गण हर दीखिया, दिखी चन्दन बालो जी ॥ ५१ ॥ श्री . ॥ काती मास अमावसई, सोल पुहुर उपदेसो जी | कासी कोसल पोसही, सीधा वीर जिणेसो जी ॥ ५२ ॥ श्री ॥ नख चूंटी माटी ग्रही. लोके लीधी राखो जी । जिन निर्वाण मही तिहां पालि पखई सर साखो जी ॥ ५३ ॥ श्री . ।। पुस्तक वात मीठी हूई, जब ते दीठो भूमो जी । बलिहारी गुरु बोलडै, समरि समरि रमनि घूम्यो जी ॥ ५४ ॥ श्री ॥ गांम गुणाक्त जन कहि त्रिहुं कोसे तस तीरो जी । चैत्य भलोउ जिहां गुणशीलउं समोसरचा जिहां वीरो जी ।। ५५ ।। श्री . ।। नयर नवादइ जिन वांदिश्रा, नव कोसे नव सालो जी | गोमां घाटी अ सांसरया संतोषी घट वालो जी ॥ ५६ ॥ श्री ॥ तीरथ भूमि न निदीयइं तउ हइ कहउ दोइ बोलो जो । लोक लंगोटीश्रा, सिरि जूडउ तनु खोलो जी || ५७ ॥ श्री . सहून नारिन पहोरइ कोइ कांचली, कांचली नाम इंगाल्यो जी । जो अरिज इम कहई संघती नारि निहाल्यो जो ।। ५८ ।। श्री । बालु तेह कुदेसडउ जिहां एहवी नारघो जी । सिर ढins किस कोढिणी, ए अवतारि नवारयो जी ॥ ५६ ॥ श्री ॥ चूल्हा फूंकि ए सखिरणी, का बालि सू नाको जी । ए रूख रसोई अ नीजि, ग्रम्ह घरि सूरिज पाको जी ।। ६० ।। श्री । मीठा मेवा महुआ हुआ, भला भला भील भोगी जी । बहुल कतूहल जंगली, सहु सराहइ तेणो जी ॥ ६१ ॥ श्री . । 11 " For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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