Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 115
________________ तीर्थ माला संग्रह हांसापुर ग्रहणां कुप्रो, ते ऊपरि गोमट एक पत्थरि वीर पोसाल, लांबी छइ हाथ १०८ ऊन्हां जल चउदै कुंड, सीभि जिहां धान्य पांचि गिरि ए सिद्धिखेत्र, निरखतो हुई हुआ । छयाल ॥ ८६ ॥ खण्ड | निरमल नेत्र ॥ ८७ ॥ पुण्य बाहिरि नालंदर पाडउं, सुरगयो तस वीर चउद रहिया चतुमास, हिवडां वडगांम घर वसतां श्रेणिक वारइ, साढी कुल कोडी बारइ । बहु देहर इक सउ प्रतिमा, नवि लहिइ बौद्धनी गरिणमा ॥ ८६ ॥ गोतम गुरु पगलां ठांणि, प्रगटी मुनि पात्रां खांगि तस पासि वाणिज्य गांम, आणंदो पासक ठांम ॥ ६०॥ पवाडउ । निवास ||८|| दीठां ते तीरथ कहियां न गिरणू जे खुश रहियां । हरख्या बहु तीरथ अटण, आव्या चउमासइ पटणइ ||११|| तप गच्छति शत शाखा पसरउ, परंपरा परिवार । घरिघल परिमल पुडुवि, प्रगट्या पारिजात जिम सार ||२|| विजयसेन सूरि प्रगट पटोधर, विजय देव सूरीस । सहज सागर गुरु सीस सुहंकर पूगी सयल जगीस || ३ || ढाल मल्हार देशी खांति खरी खत्रीकुंड नी, जांणी जनम कल्याण हो वीरजी । चैत्र कल तिथि तेरसई, जात्र चडी सुप्रमांण हो वीरजी खां. ॥६४॥ Jain Education International मास वसंत वनि विस्तरया, मलया चलना वाय हो वीरजी । वन राजी फूली भली, परिमल पुहुवइ न माय हो वीरजी खां. ॥६५॥ मउरिश्रा मचकुंद मोगरा, मरुत्रा मंजरिवंत हो वीरजी । बउलसिरि वलि पाडला, भृंगयुगल विलसंत हो वीरजी खा. ||६| कुसुम कली मनि मोकली, बिमणा मरुप्रा दमणा नी हो वीरजी । तलहटीइ दोइ देहरे, पूज्या जिन मन कोडि हो वीरजी खां ॥१७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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