Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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१०२
तीर्थ माला संग्रह वामा वायस पूरि आस, खरहा चउ दक्षिण दिसि चास ।
तास शकुन पंचास तु जयु जय० ॥१२॥ इम अनेक शुभ शकुन विचारि,
मिलिअ सवच्छ दोय गाई तिवारि ।
पहुता यमुना पारि तु जयु० ॥१३॥ कुंथुनाथ प्रभु पास जिणेसर, दोइ जिणहर पूजउ अलवेसर ।
___केसर चंदण कुसुमे तु जयु० ॥१४॥ बारि कोस पीरोजावादि, मुनि सुव्रत पूजउ प्रासादि ।
देहरासर ऋषभादि तु ।।१५।। दउढसउ कोसे साहियाहापुरि, मिलि जिहां दश दिशि दिशाउर ।
देहरासरि बहु देवेतु ।।१६।। तिहाथी त्रिणि गाक्त मक्त गाम, जिणहर इक तिहां जुन ठांम ।
प्रतिमा पनर प्रणाम तु जयु ॥१७॥ मृगावती तिहां केवल पाम्यु, चंदनबाल चरणि सिर नाम्यु।
इण परिशुधु खाम्यु तु जयु ।।१८।। सामी पगि लागी सुकुमाला, वयण वदि तब चंदनबाला ।
केवलि लहिन रसाला तु जयु ।।१६।। तिहां थकी नव कोस कोसंबी, जांगे अमरपुरी प्रतिबिंबी।
यमुना सीरि विलंबी तु जयु ॥२०॥ उतपति सुरिणइ पुरुष बहुनी, पद्मप्रभ जनमि धूनी।
ते कोसंबी जूनी तु जयु ॥२१।। जिनहर दोय तिहां वांदिजि, खमणा वसही षिजमति कीजि ।
गढ उतपति सुरिणजि तु जयु ॥२२॥ चंदनबालि छमासो तपसी, प्रति लाभ्यउ जिनवीरउ हरसी।
वष्टि कोडिधन वरसी तु जयु ॥२३।। रिषि अनाथी इहान उ वासो, नयणह वेगण जिण अहिनासो ।
___ अवधि कही छमासी तु जयु ॥२४।। पहिलु समकित एमा लीधु, श्रेणिकराइं जिन पद बाधु ।
धना सरोवर साधु तु जयु ॥२५॥
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