Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 102
________________ मटारा तीर्थ माला संग्रह श्रीवरकांणा पासजी हूं वंदुरे, नित्य उठी सवेर देषी आनंदुरे ॥२॥ सीखर बंध प्रसाद छे, फरती भमतीरे, बावन अोला अोल मुझ मन गमती रे ॥३॥ ग्रे तीरथ सुहांमणो, गोडवाड देसरे, सहू जीवने आधार नव नव नवसरे ॥४॥ गांमो गांमना संघपति इहां आवेरे, जात्रा करे शुभ भाव, प्रभु गुण गावेरे ॥५॥ वलि विजोवा पासजी भले भेटोरे, सुदर प्रभु दिदार दुःख सवि मेटोरे ॥६।। शांति ऋषभ जिन वंदिये गांम गांमेरे, ___ आव्या पाली सेहर भले शुभ कामेरे ।।७।। श्री नवलक्खा पासजी हुं जुहारु रे, तिम गोडी चोमाहाराज मनमोह्य माहरु रे ।।८।। वलि अचिरा नंद वंदिये घणे हेतेरे, सोलमा श्री शांतिनाथ मनने गम तेरे ॥६॥ श्रीसुपास सुहांमणा जिन वंदोरे, जात्रा करि भले भाव भव पाप निकंदोरे ।।१०।। वलि डूंगर ऊपर एक छे जिन देहरोरे, श्री गोडी महाराज ज्यु सिर सेहरोरे ॥११॥ इण रीते चैत्य जुहारिया घणु रंगेरे, पंचे तीरथ धाम मनहू उमंगेरे ।।१२।। रंगे ऋषभ गुरु सेवतां शुभकारीरे रे, जयो जयो सासन जेने पर उपगारिरे ।।१३।। शासन इष्ट प्रतापथी संघ समुदायेरे, कहे दयानंद मुनि राज सहू सुख पायारे ।।१४।। पंच तोरथनी भावना जे भावेरे, पंचमी गति ना सुख लीला पावरे ।।१५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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