Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 96
________________ श्री नाडोल पंचतीर्थीको तीर्थमाला श्री परमेष्टिनमः अथ तीर्थमाला लिख्यते दोहा-- नमीउं जिण चोवीस ने, प्रणमुहित गुरु प्राण । सरस वचन विद्या देयण, नित्य नमु सुविहांरण ॥१॥ पंचे तीरथ प्रणमीई, पंचमी गति दातार । पंच परमेष्टी वांदतां, जनम सफल अवतार ॥२॥ दरसन परसन सुलभता, लेवा समकित भोग । लाभ लहे जात्रा तणो, फल कह्यो ग्रंथे जोग ॥३॥ समकित दृष्टि सुरनरा, पूजे त्री करण जेह । परब दीवस अठाइयां, करे महोछव तेह ॥४॥ निन्दा विकथा परहरी, वली परहर परमाद । विषय कषायने छोडिइं. राग द्वेष उनमाद ॥५॥ सेवा भगति गुरु वंदना, जीव दया हित धार । दांन सुपात्रे दीजीई, ए श्रावक आचार ॥६॥ सीव हेतु साधन एह छ, संसार साधन एह । देह तणु साधन भलु, तोरथ करिये तेह ॥७॥ हालसांभल रे मांरी सजनी बेनी, रातडली किहां रमी पाव्या जीरे ए देशी। श्री तारंगा गढनी यात्रा, करीईहर्ष सवायाजी रे । बीजा अजित जिन अंतर जांमी, उच पणे प्रभु राया ।। सुणो भवी साजनारे ॥१॥ वली नंदी सरनी जे ठवरणा, चोसठ से अडयाल जीरे। मेरु अष्टादश गणधर पगलां, टुक प्रमुख रसाल ॥ सुणो भवी साजनारे ।।२।। फरती भमती माहि रुडु देहरो एक जुहारो जीरे । तीरथ राजनां पगलां वंदु, धर्म स्थानक मनोहार ।। सुणो भवी० ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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