Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 87
________________ ८० तीर्थं माला संग्रह धोबी साधवाली धका धक्क मांडी, मुनि मार्ग मर्याद बेहुँ छेक छोडी ॥१०॥ क्षमा धर्म खोयो समो नांहि जोयो, धरा ऊपरे जई नरो धर्म घोयो । क हक हांणी इणे आज कीधी, यति धर्मने अंजली अन दीधी ॥ ११ ॥ मते आपरे मंद बुद्धि ए मंड्या, इसा प्राहुड्या जेम पाडा प्रचंडा । यथा अल्प पाँणीय भेसाज्यु डोल्हयो, तथा जाडयथी जैन शासन विगोयो ॥ १२ ॥ विढं तां सीवे ढि पाई वडाई, यति नांहि जिंदा कहांणी कहाई । यतीड़े करी जोर जाभी जडाई, गणाधीशरी ग्रह चौकै चढाई ||१३|| दोहा मांनी मद मच्छर भरयो, तप गच्छ तणो तिलक । पिरण खरतरस्युं खेडतां, सटकी गयो सलक ॥ १४ ॥ कलश छप्पय सटकी गयो सलक्क श्रातप गिरि उठाय अपजस लह्यो अपार, मुरझांगा महाजन्न, भूभंत एम भोखो वदन, सकल लोक समझकहे, दोहा पुरांणी, पटकी पालखी तुरत लेगया तांणी ॥ जगत ए वातज जांणी, परेम न रह्यो पांणी ॥ थयो घटतो आदरी । वरजो वात जवादरी ॥ १५॥ अढारसे प्रकावनै, वैसाखे वांणी । जालम यतिवर भू भिया, सेनूजा पाली तांगे भरणेय भोजग तणौ अ जंग | राख्यो Jain Education International पेखीयो, भीमडो, रुडो For Private & Personal Use Only यति संघांणी ॥ १६ ॥ रंग ॥ १७ ॥ www.jainelibrary.org

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