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तीर्थं माला संग्रह
धोबी साधवाली धका धक्क मांडी, मुनि मार्ग मर्याद बेहुँ छेक छोडी ॥१०॥ क्षमा धर्म खोयो समो नांहि जोयो,
धरा ऊपरे जई नरो धर्म घोयो । क हक हांणी इणे आज कीधी, यति धर्मने अंजली अन दीधी ॥ ११ ॥ मते आपरे मंद बुद्धि ए मंड्या,
इसा प्राहुड्या जेम पाडा प्रचंडा । यथा अल्प पाँणीय भेसाज्यु डोल्हयो,
तथा जाडयथी जैन शासन विगोयो ॥ १२ ॥ विढं तां सीवे ढि पाई वडाई,
यति नांहि जिंदा कहांणी कहाई । यतीड़े करी जोर जाभी जडाई,
गणाधीशरी ग्रह चौकै चढाई ||१३||
दोहा
मांनी मद मच्छर भरयो, तप गच्छ तणो तिलक । पिरण खरतरस्युं खेडतां, सटकी गयो सलक ॥ १४ ॥
कलश छप्पय
सटकी गयो सलक्क श्रातप गिरि उठाय अपजस लह्यो अपार, मुरझांगा महाजन्न, भूभंत एम भोखो वदन, सकल लोक समझकहे,
दोहा
पुरांणी,
पटकी पालखी तुरत लेगया तांणी ॥ जगत ए वातज जांणी, परेम न रह्यो पांणी ॥ थयो घटतो आदरी । वरजो वात जवादरी ॥ १५॥
अढारसे प्रकावनै, वैसाखे वांणी ।
जालम यतिवर भू भिया,
सेनूजा
पाली तांगे भरणेय भोजग
तणौ अ जंग | राख्यो
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पेखीयो, भीमडो,
रुडो
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यति
संघांणी ॥ १६ ॥
रंग ॥ १७ ॥
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