Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 83
________________ तीर्थ माला संग्रह आगल देहरी दोय समीपे जाऊं रे । तिहां प्रतिमा पगलां दोय नमुसीर नामी रे ॥६॥ वली चेलण तलावडी देखी मनमां धारु रे।। तिहां सिद्ध सिला संपेख गुणी संभारू रे । १०॥ भाडवें भवि अण वृद आपण गाऊँ रे । जे थानिक अजित जिणंद रहया चउ मासु रे ॥११॥ जिहां संब मुनि परजुन्न थया अविनाशी रे । धन्य कृतारथ पुण्य श्रुणे गुण रासी रे । १२॥ हुँतो सिद्धवड पगलां साथि नमु हित काजे रे। ___इहां सिव सुख कीधुहाथी बहु मुनिराजे रे ॥१३॥ इहां सिव सुख कीधु हाथी बहुँ मुनिराजे रे। इम चढतां च्यारे पाजि चड गतिवारे रे ॥१४॥ एह तीरथ जंगी जिहाल भवजल तारें रे। जेजग तीरथ संत ते सहुँ करीये रे ॥१५॥ ते सहुपण ए गिरि भेटे अनंत गुण फल बरीये रे । पुंडरीक नाम एह वीस लीजे रे ।।१६॥ जिम मन वंछित काम सघली सीजे रे । __ करीये पंच सनात्र रायण प्रादें रे । निम रूडी रथ यात्रा प्रभु प्रसादें रे । __ वली नवांणु वार प्रदक्षिणा फरिये रे । स्वस्तिक दीपक सार जय-जय करीये रे ॥१७॥ पूजा विविध प्रकार नृत्य बनावों रे । इम सफल करी अवतार गुणी गुण गावो रे ।। तुम्हे साधु साव्हमीनी भक्ति करज्यो रंगे रे। निज शक्ति अनुसारे तीरथ संगे रे ॥१८॥ पाली तांणु नगर धन्य-धन-धन ते प्राणी रे । जिहां तीरथ वासी जन पुण्य कमाणी रे । प्रह ऊगम ते सुर ऋषभजी भेटे रे । करिदशत्रिक अरणगार पाप समेटे रे ॥१६॥ जिहां ललिता सर पालि नमो प्रभु पगलां रे । डुगर भणि उज माल भरीये उगला रे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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