Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 82
________________ ७५ तीर्थ माला संग्रह नान्हां मोटां भुवन निहाली, सडत्रीस गण्यां संभाली राज आ.। सवि संख्या जिन पडिमा धारी, ___पांच से नव्यासी जुहारी राज, आ.॥८॥ एह तीरथ माला सुविचारी, सुणी जात्रा करज्यो सारी प्रा. ॥ दर्शन पूजा सफली थास्ये. शुभ अमृत भावे गुण गास्ये राज प्रा.॥६॥ ढाल १० मा-संभव जिनस्यु प्रीत अविहउ लागी रे ।एदेशी॥ तुम्हे सिद्ध गिरिना बे टूक जोई जुहारो रे, उं भूमि अनादनी मुकि एम विचारो रे। तुम्हे धरमी जीव संघात परणीत रंगे रे, तुम्हे करजो तीरथ जात्रा सुविहित संगे रे ।।१।। वावरज्यो एक वार सचित्त सहू टालो रे। करी पडिकमणां दोय वार पाय पखालो रे ॥२॥ तुम्हे धरज्यो सियल शृंगार भूमि संथारो रे । अलु अाणे पाये संचार छहरी पालो रे ॥३॥ इमनी सुणी आगम रीत हीयडे घरज्यो रे। करी सद्दहणा परतीत तीरथ करज्यो रे ॥४॥ आ दुःसम काले जोय विधन घणेरां रे। कीधु ते सी धुं साये स्युछे सवेरा रे ॥५॥ ए हित शिक्षा जांणि सुगुण हरखो रे । वली तीरथ ना अहिठाण आगल निरखो रे ॥६॥ देवकीना षट नंद नमी अनुसरिये रे । आतम शक्ति अमंद प्रदक्षिणा करीये रे पहला उलखा डोल भरी ते जलस्यु रे ॥७॥ जाणे केशरनो झक भील नमणना सरस्युरे । पूजे इन्द्र अमोल रयण पडि माने रे ।। तेजल आखि कपोल सेवो सिर ठामे रे ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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