Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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तीर्थ माला संग्रह दीठो लाडण मरु देवीनो बेठो तीरथ थापीजी। पूरब नवाणु वार पाव्याथी, जगमां कीरत व्यापी ॥४॥हुँनी० श्री आदीश्वर विधिस्यु वंदो, बोजा सर्व जुहारूं जो । नमी विनमी काउसगिया पासें, जोइ जोइ आतिम तारू ॥शाहुँ०नी० साहमा गजवर खांधे बेठां, भरत चक्री में माडोजी । तिम सुनंदा सुमंगला पासें, प्रणमु धनते लाडो ।।६।०नो० मूल गंभारा मां जिन मुद्रा, एक जंगी पंचासजी। रंग मंडपमा पडिमा इंसी, वंदी भाव उल्लासजी ॥७॥०नी० चैत्य उपर चौमुख थाप्योछे, फरती प्रतिमा बांणुजी। वली गौतम गण धरनी ठवरणा, शी तारोफ वखांणु ॥८हुँनी० देहरा बाहिर फरती देहरी, चोपन खडी दीसेंजी।। तेहमां प्रतिमा एकसो त्राणु, देखी हीय`हींसें ।।६।।नी नीलडीरायण तरू अर हेठल, पीलडा प्रभुना पायजी। पूजी प्रणमी भावना भावी, उलट अंग नमाइंजी ॥१०॥हुँनी० तस पद हेठल नाग मोरनी, मूरत बेहूँ सुहावेजी। तस सुर पदवी सिद्धा चलना, महातम माहे कहावें ॥११॥हुँ०नी० सोहमां पुंडरीक स्वामी विराजे, प्रतिमा छवीस संगेजी। तेहमां बौधनी एक जिन प्रतिमा, टाली नमीये रंगेजी ॥१२॥हुँनी० तिहाथी बाहिर उतर पासे, प्रतिमा तेर दिदारूजी । एक रूपानी अवर धातुनी, पंच तीर्थी छे वारुं ॥१३॥हुँनी० उत्तर सनमुख गण धर पगलां, चउदसयां बावन नांजी। तेहमां सात जिणंद जुहारि, पूरयां कोउते मननां ॥१४॥हुंनी. दक्षिण पासे सहस्त्र कूटनें, देखी पाप पलायजी। एक सहस चउवी से जिरणेसर, संख्याइं कहेवायें ॥१५॥हुं०नी० दश क्षेत्रे मलो त्रीस चोवीसी, एक सो साठि विदेहेजी। उत्कृष्टा वेर मान विभूजी, संप्रति वीस सनेहे ।।१६।।हुं०नी० चोवीस जिननां पांच कल्याणक, एकसोवीस संभारीजी। शाश्वत च्यार प्रभु सरवालें, सहस कूटनिर धारीजो ॥१७॥हुं०नी० गौमुख जक्ष चक्के स्वरी देवि, तोरथनी रखवालीजी। ते प्रभुना पद पंकज सेवें, कहें अमृत निहालीजी ॥१८॥हुं०मी०
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