Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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६४
तीर्थ माला संग्रह भले० राम भरत श्रुक शेलग स्वामी,
थावच्चा नमुसिर नांमी रे ॥१४॥ भले० भूषण कुंडवाडी जोइ वंदो,
सुकोसल मुनिपद सुख कंदो रे ॥१५।। भले० पागल हनुमंत वीर कहाइ,
तिहाथी बे वाटि जवाइ रे ॥१६।। भले० डावी दिसा राम पोले होरंजी,
सांमी दीसे नदीय सेबुजी रे ॥१७॥ भले० जातां जिमणी दीसि वंदो भाली,
मुनि जालीमशाली उवसाली रे ॥१८॥ भले० तिहाथी डावी दिसी सोहमा सोहावें,
नमो देवकी षट् सुत भावे रे ॥१९॥ भले० इम शुभ भावथी उत कर,
राम पोलिमां पइसीइं हरषे रे ॥२०॥ भले० कुतासर पालि नवयण भालो,
जेकीधी साह सुगालो रे ।।२१।। भले० धाइ सोपान चढी अति हरषो,
जई वाघिण पोलिं निरषो रे ॥२२॥ भले० थिरताई सुभ जोग जगावो,
कहे अमृत भावना भावो रे ॥२३।। ढाल:सीता हरषी जी ए देशी-नलिना वत्ती विजये जयकारी ए देशी ।। अती हरर्षे संचरतां जोतां, जिनघर अोला अोलीली जी जीव जगाडी सीस नमांडी, पावी हाथी पोलेजी
हुँतो प्रणमुरे हरषी जी ॥१॥ आगल पूंडरीक पोले चढतां, प्रणमु बेकर जोडी जी। तीरथ पति - भुवन निहाली, करम जंजीर में तोडी ॥२॥ मूल गंभारे जातां मांनु, सुकृत सघले तेडी जी। ततषिण दुकृत दूर पूलायां, नांषी कुगत उषेडी जी ॥३॥
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