Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ तीर्थ माला संग्रह बावन शिखरें वंदीये, वीसरामी रे । तिहुंत्तर जिन परिवार नमु० ॥ वली धन राजने देहरे, वोसरामी रे । प्रतिमा वंदु सात नमुं शिरनामी रे । देहरे वर्द्धमान सेठ ने वीसरामी रे । प्रतिमा सात विख्यात नमुळे शिरनामी रे । सा रवजी राधनपुरी विसरामी रे । तेह जिनधर जोय नमुं शिरनामी रे । तिहां पन्नर जिन दीपता विसरामी रे । प्रणम्यां पातक धोय नमुं शिरनामी रे । तेहनी पासे राजता विसरामी रे । मंदिरमां, जिनवर च्यार नमुं शिरनामी रे । तिहांथी प्रगल जोइइं विसरामी रे । अद्भुत रचना च्यार नमुं शिरनामी रे । जगत सेठजी करावी यो विसरामी रे । रण शिखरो प्रासाद नमुं शिरनामी रे । तिहां पन्नर जिन पेखतां विसरामी रे । मुभ परिणती हुई प्रह्लाद नमुं शिरनामी रे | पासे भुवन जिन राजनुं विसरामो रे, तिहां षट प्रतिमा घार नमुं शिर नामी रे ॥ मुरछा उतारी की विसरामी रे, तेहीर बाई इ सार नमुं शिरनामी रे ॥ कुरजी लाघात विसरामी रे, दीपे देवल खास नमुं शिरनामी रे ॥ तेत्रीस जिनसु थापीया विसरामी रे, सहस फणा श्रीपास नमु शिरनामी रे || विमल वसही यें चैत्य छै विसरामी ये, जुम्रो भूलवणीमां चार नमुं शिरनामी रे ॥ वली भमती चौमुख बेमली विसरामी रे, तिहां इक्यासी जिनधार नमुं शिरनामी रे | Jain Education International For Private & Personal Use Only ६६ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120