Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 34
________________ तीर्थ माला संग्रह ध्वज फरकने लगे तो स्तूप जैनों का समझा जाय और लाल ध्वज फरकने पर बौद्धों का।" क्षपक मुनि ने मथुरा जैन संघ के नेताओं को अपने पास बुलाया और वन देवतोक्त प्रस्ताव की सूचना की। संघनायकों ने न्यायाधिकरण के सामने वैसा ही प्रस्ताव उपस्थित किया । राजा तथा न्यायाधिकारियों को प्रस्ताव पसन्द आया और बौद्ध नेताओं से इस विषय में पूछा, बौद्धों ने भी प्रस्ताव को मञ्जूर किया। राजा ने स्तूप के चारों ओर रक्षक नियुक्त कर दिये, कोई भी व्यक्ति स्तूप के निकट तक न जाय, इसका पूरा-पूरा बन्दोबस्त किया इस व्यवस्था और प्रस्ताव से नगर भर में एक प्रकार का कौतुक मय अद्भुत रस फैल गया। दोनों सम्प्रदाय के भक्त-जन अपनेअपने इष्ट देवों का स्मरण कर रहे थे, तब निरपेक्ष नगर जन कब रात बीते और स्तूप पर फहराती हुई ध्वजा देखें, इस चिन्ता से भगवान् भास्कर से जल्दी उदित होने को प्रार्थनायें कर रहे थे। सूर्योदय होने के पूर्व ही मथुरा के नागरिक हजारों को संख्या में स्तूप के इर्द गिर्द स्तूप की ध्वजा देखने के लिये, एकत्रित हो गये, सूर्य के पहले से ही उसके सारथी ने स्तूप के शिखर पर दण्ड तथा ध्वज पर प्रकाश फेंका, जनता को अरुण प्रकाश में सफेद वस्त्र सा दिखाई दिया, जैन जनता के हृदय में आशा को तरंगें बहने लगीं। इसके विपरीत बौद्ध-धर्मियों के दिल निराशा का अनुभव करने लगे, सूर्य देवने उदयाचल के शिखर से अपने किरण फेंककर सबको निश्चय करा दिया कि स्तूप के शिखर पर श्वेत ध्वजा फरक रही है, जैन धर्मियों के मुखों से एक साथ "जैनम् जयति शासनम्" की ध्वनि निकल पड़ी और मथुरा के देव निर्मित स्तूप का स्वामित्व जैन संघ के हाथों में सौंप दिया गया। ___ मथुरा स्थित देव निर्मित स्तूप को उत्पत्ति का उक्त इतिहास हमने सूत्रों के भाष्यों, चूणियां और टीकात्रों के भिन्न-भिन्न वर्णनों को व्यवस्थित करके लिखा है, प्राचार्य-जिनप्रभ सूरि कृत मथुरा कल्प में पौराणिक ढंग से इस स्तूप का विशेष वर्णन दिया है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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