Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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तीर्थ भाला संग्रह
सतर सहिस्त्र गुजराति ए...
मेवाड शुरिण
"अवर देस सवि
मेलवा सुरवाण कहिज ए ||२७||
वातडी ए
रातडी बोलइ
...
बिहिनि म बोलि विरुद | तुम्ह मोटी साखई ॥ २८ ॥
प्रारण भोजन ए हुवइ प्रहार ।
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५६
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मीलन नारी कंथि साथि मंडइ विविहार ॥२६
"वउपइ मेवाडि मोटइ मंडारिण ।
करइ आपण देस वखारण "टसिरीसु जिहादुग्रं ... तरि उठइ स्वग्नं ॥३०॥
सुकोसल रिषि सिध उजित्या रामचंद गिरि कहोइ ईह । चित्रांगद राजा नुंठाम जोताँ नयणे प्रति अभिराम ||३१|| जिाहर मनोहर प्रतिउत्तंग वाद करइ आकासिंह गंग । वारु मंदिर पोलि दपागार, तलियां तोरण घर घरि वारि ॥ ३२ ॥ वारु गंध सुगंधि शालि, नीर नदी वहइ सुविशालि । विषमीवेला आवs काजि, जिहां जिन धर्म के रुराजि ॥ ३३ ॥
,
तलइ,
सिउ देस मेवाड प्रसिध धन करण कंचरण रयण समृध । घणी कहुँ कसी उपमा, रंगि रमिइ ईश्वर नइ उमा || ३४ | इसी वात निसुणी जे पूरवनी बोली ते तलइ । प्राउ तीनइ सखी मिलि जाउ, मेवाडी उतर देस प्राउ ||३५|| तब मरुधरनी बोलइ नारि, गिरि सिरि ऊपरि तुम्ह प्राधारि । वारु वाहन करह न ठाम, पाली पुलइ
||३६||
काला कापड उवेस, चोर चरड नउ एह ज देस । भलां कोइ नवि दीसइ तिहां, तू सरखी दीसइ भिइ जिहां ||३७|| कहइ गूजरी सुरिण मुज वाणी, मेवाडी तू मकरइ वखाण । म्ह देसिसेज गिरिनारि, नितु नितु प्रणमु' त्रिणे कालि ||३८||
सब तीर्थंकर कहइ किहां भया, गोयम पमुहुं किहां मुगति गया । धना शालिभद्र अणगार, पूरवनी कहइ वचन विचार ||३६||
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