Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 68
________________ तीर्थ माला संग्रह धन धन धन नाभि नरसु रे, मरुदेवी उपरि हंसू । दौं दौं कति मादल वाजइ रे, सनाइ नादइ अंबर गाजइ ।।५३।। वली वंस विशेष वजावइ रे सुर किन्नर जोवा आवइ । रूडा ताल थकी नवि चूकइ रे पद ठवणि निरतइ मुकइ ।।५४।। राग जयमालाइणि परिनाटिक कीघलु, नमोत्थुणं भगवंत । द्रव्य पूजा श्रावक भरणी, तिहां छइ लाभ अनंत ।।५।। तिहां लाभ अनंता जाणि, श्री आगम केरी वाणी । सुणी सदहणा मनि प्राणी, कां चूकउ मुरख प्राणी ॥५६॥ मूरख प्राणी सांभलो, अम्ह मनि राग न रोस । ज्ञाता मि द्रुपदी, कीधी पूज न दोस ।।५७।। कीधी पूजन दोस इम प्रतिमा भगवती मांहि । चमरातणइ अधिकार छइ ए पागम-परवाह ॥५॥ ए आगम मारग सुधउ, जिन पारणा तुम्ह प्रतिबुज्झउ । भाव पूजा मुणिजइ बोलि, कल्पि इ मतिम करउ भोली ।।५।। भोली मति सवि परिहरी, मिच्छा दुक्कड देय । संघ प्रति सदुइ हरषिउ, इन्द्रमाल पहिरेय ॥६०॥ इन्द्रमाल पहिरि करी, भावना भावइ भूरि । च्यार संघ सोहामणा वस्सइ कंचण पूरि ॥६१॥ वरिसइ कंचण कोडि प्रभु प्रणमी दो कर जोडी। चारु छंद वदन गुण गावइ अतिउलट अंगि न मावइ ॥६२।। अति उलट अंगि न माय तेणइ हइ उइ हेज अपार । सवि तीरथ भेटि करि सवे करू जुहार ।।६३।। सवि तीरथ भेटी करी, पउहता गढ गिरिनारि । नेमिनाथ जिन वंदवा यादव कुलि शृंगार ॥६४॥ ए यादव कुलि शृंगारा राजीमति प्राण प्राधारा । चारु चंदवदनीं सकुलीगी नव भवनी नारि अमीणी ॥६५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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