Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
View full book text
________________
तीर्थं माला संग्रह
अभयकुमार अनइ श्रीमेह, श्रेणिक राजा धर्म सनेह । श्रीमेतारय आणंद नाम, कामदेव श्रावक अभिराम ॥ ४oll
६०
हवइ दुहा
जिन मंदिर जावां भरणी, प्रावी सोरठ नारि । वाद करंति देखि करि, बोलइ बोल विचार ॥४१॥ काहु सखि तुम्हारु बोल फलउ, बोलउ बोल अपार । देसडा, सहुनइ गमइ
आप आपणा
अपार ॥४२॥
जाणि ।
वखाणि ॥ ४३ ॥
ए
वाद तुम्हारओ जो खरउ जो जिन पूजा सत्तरभेद पूजा वली, करइ ते देस गुजराती नो गोरडी, भणइ भलु जिनिकरि जिरणवर पूजीइ ते हुँ जाणु चंपक केतक केवडा मरूनो दमरणो वर कल्हार पाडल भलां जाई जुई न सेवंत्रां सोवन कली, कुसुमह
माल ।
वारू केसर चंदन
अगर कपूर कस्तूरीस्युं
सार ||४६ ||
कल्पवृक्षनां
कल्पवृक्षनी
वेलि ।
फूलडां अवर सुगंधे फूलडे, हवइ करीइ रंग रेलि ॥४७॥ जिनमंदिर, नहिं
सुरगउ विहिनि चउरासि आसातना,
टालइ
Jain Education International
ढाल सामेरी
चउथ अ समेलि आवइ रे जिनमंदिर भावना भावइ । श्री ऋषभ तरणा गुणगावइ रे वली वली शीस नमावइ || ४ || जिनपूजाइ नवरंगी रे, गुणगान करेइ बहु भंगी 1 जय जय नाभि मल्हारो रे, शत्रुंजय गिरिवर श्रृंगारो ॥ ५० ॥ तव गूजरधरनी नारी रे, शृंगार करे अतिसारी रे । जिन प्रागलि नाटिक मंडइ रे प्रभु दरिसन नेत्र न छंडइ रे ॥ ५१ ॥ परि घूघर माला घमकइ रे, कस्तुरी परिमल बहिकइ रे । वर वेणी भरणी लहुकइ रे गुणगान करइ वर वहइकइ रे ॥५२॥
onl
काम ।
आम ॥४४॥ रंग ।
विरंग ॥ ४५ ॥
वादनउ ठाम ।
ते अभिराम ||४८ ||
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120