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तीर्थ माला संग्रह
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दुहा
काम भोग भेला अछे, आरत रौद्रना बीज । धन जन एहथो प्रोसरया, प्रगट्या जस बेधि बीज ॥१॥ रूप विजय विद्या निधि, विमल उद्योत सुसंत । वीरविजय वचनावली, थया थविर गुणवंत ॥२॥ सेठ हठिसिंह सांभरे, जेहना गुण अभिराम । वीसरया नवि वोसरे, सज्जन जन ना नाम ॥३॥ काम-कलण बुडा नहीं, तीन समय अणगार । श्रावक ने वलि श्राविका, वंदो वार हजार ।।४।। हवें श्रीपालकुमार ॥ देशी ए ढाल नी ॥ तपगछ नो सुलताण, सिंहसूरीश्वर जगजयो जी । सत्य विजय अभिधांन शिष्य विभूषण तस थयो जी ॥१॥ कीधो धरम उद्धार, संवेगी नभ दिनमणी जी। कपूर विजय पट्टधार, उज्जवल कमला तस तणो जी ॥२॥ पदकज मधुकर रूप, क्षमा विजय गुण आगला जी। जिनविजय जिन रूप, पाटें तेहनइं निरमला जी ॥३॥ वृद्धि विजय पन्यास, हंस विजय गुरु गुण निधि जी। मोहनविजय पास, आराधननी बहु विधि जी । ४॥ तेहना शिष्य प्रधान, अमृत विजय सुहामणा जी। शीतल चंद्र समान, अतिशय गुण गण नहीं मणा जी ॥५॥ पालीपुर ने पाश, हाथ प्रतिष्ठा सांभली जी। जालो प्रभुनो उल्लास, जिन जोतां मतिप्रति भलिजी ॥६।। काजल केसर जात, नयणे जइ ने निहालजो जी। एहवा तस अवदात, गुण गिरुपा संभाल ज्यो जी ।।७।। बहुला जैन प्रासाद, तस उपदेशे नीपना जी। दीठां अधिक पाल्हाद इंद्र लोके गुरु ऊपनाजी ।।८।। तरणी तुल्य प्रकास, गणधर गोयम जेहवा जी। तस पद अधिक उल्लास, तेज विजयगुणी तेहवा जी ।।६।।
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