Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 46
________________ ३ तीर्थ माला संग्रह जय जय संति जिणेसरू, नमतां विघन पुलायारे। पूजतां संकट टल इं सुभध्यानि चित लायारे जय जय संति जिणेसरू (अांचली)। हथणा उर पुर सुदरू विस्ससेन भूपाला रे । तस कुल कमल दिवाकरू, सयलजीव रखवाला रे ॥१६।। जय जय० एक पसूनई काररिंण, निज जीवित नवि गणिया रे। पगि लागि सुर वीन वइ, साचा सुरपति थुणिया रे ॥२०॥जय जय० अचिरा कुखसरोवरिं, राजहंस अवतरिया रे। तीणि अवसरि रोगादिकु श्रीजिनइं अवहरिया रे ॥२शाजय जय० भव भय भंजन जिन तू सुणी लंछणमसि पगि लागू रे । मिगपति बीहतु मिग सही । हिव मुझनइं भय भागु रे ॥२२॥जय जय तुझ गुण पार न पामीई, तू साहिब छै मारो रे । जे तुम सेव करई सदा, ते सुख लहई भलेरो रे ॥२३।। जय जय० इकसत पणवीस य भली । संति सहित जिन प्रतिमा रे । भाव धरी जे वांदसिइं, ते लहसिइ वर पदमा रे ॥२४॥जय जय० ढाल-- चडथइ जिणहरी हेव, भाव धरी घणु जास्यू अतिउलट धरीए। नमस्यु प्रथम जिणंद, विधिपूख सदा तोन पयाहिरण स्युकरीरा ॥२५॥ नाभिभूप कुलचंद माता मरुदेवा उयरि सरोवरि हंसलु ए । अवतरिउ जगनाह त्रिहुं नाणे करी पूरउ निरमल गुणनिलु ए । २६।। पढम जिणंद दयाल पढम मुणीसर पढम जिणेसर जगधणीए । पढम भिखाचर जाणि पढम जोगीसर पढमराय तूं बहु गुणीए ॥२७॥ आदि जिणेसर देव मूरति तुमतणी भवि जन नइं सुख कारणीए । रूपतणु नहिं पार, तेजि त्रिभुवन-त्रिभुवन मोहीइए ॥२८।। तु ठाकुर तु देव तु जगनायक जयदायक तू जगगुरुए । माय ताय तू मीत परम सहोदर परम पुरुष तू हिरत करूए ॥२६॥ कोतरि जिणबिंब तिणि करि सोभती रिषभ देव तुझ मूरतीए । जे वांदई नरनारी प्रह उठी सदा, जारणेज्यो सुभमतिए ॥३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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