Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 59
________________ तीर्थ माला संग्रह कुवे खारे रे, पोले संभव जिन तपे । लांबेस्वर रे, बे जिन योगीश्वर जपे ॥७०।। जपें जोगी सहस्र फणना, सांवला सुहामणा । नाम समरो भविक भावे, पास प्रभु रलीग्रामणा। दोसोवाडे दोय देहरां, नाथ सकल गुणकरा । पार्श्व भावा जगत चावा, स्वामि श्री सीमंधरा ।।५।। वाडे कुसुबे रे, शांतिजिन प्रतपे अति । मारवाडी रे, खडकी मांहि जिन पति । देव दूजा रे, नित सुमरे सुर नरपति । पोल सारी रे, कोठारीनी शुभ मती ॥त्रु०॥ शुभमती सुणज्यो तेहमांहि पोल वाघण परगडी। जगत वल्लभ नाथ समरु केम विसरु एक घडी । तेह पाडे चैत्य सारा, पट तणी संख्या सुणो। आदीश्वर ने अजित स्वामी, दोय शांति जिन भणो ॥६॥ चिंतामणी रे, पारस अाशा पूरतो। वीर वंदो रे, संकट संघना चूरतो। पोल चौमुख रे, कलिकुंड नामे पास छ। वली शांती रे, दिनकर जेम प्रकाश छे ॥त्रु०॥ प्रकाश प्रभु नो पोल नगीना आदि जिनवर नो सुण्यो। साहपुर में नाथ संभव, भक्ति भावें संथुण्यो । पंच भाइ नी पोल रूडी, चैत्य बे जिनराज ना। आदि शांती देव देखी, देव दूजा लाजता ॥७॥ दोहा: इशल पार्व पारसनाथ ना, गुण गण मरिण गंभीर । पूजो कीका पोल मां, भवजल तरवा धीर ॥१॥ भावें निरखु हरख में, संभव प्रभु दीदार । लूणसे वाडे नित नमु, नाथ हियानो हार ॥२॥ दरवाजे दिल्ली तणे, वाडी सेठनइं नाम । कीधी तीरथं थापना, शिव मारग विसराम ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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