Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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॥ श्री॥ श्री राजनगर तीर्थमाला दोहावचन सुधारस वरसतो, सरसति समरी माय । गुरु गिरुपा गुण आगला, तेहना प्रणमु पाय ॥१॥ गुर्जरधरामें गाजतो, राजनगर शुभ थान । मोटा मंदिर जिनतणा, सुरिणये सत अनुमान ॥२॥ किण किण पोले देहरां, तीर्थंकर अभिधान । रसना शुचि करवा भणी, पभणु तस अहिठांण ॥३॥ प्रभु पास नो मुखडो जोवा, भव भवना दुखडां खोवा ।।ए वेशी।। जुहरी वाडे जिनवर धाम, मानु शिवमारग विशराम । पहलो धर्म जिणंद जुहारो, मन मोहन संभव सारो ॥१॥ सुपारसनाथ निहाली, आज आणंद अधिक दिवाली। सोदागर पोल में सार, शांतिजिन जगदाधार ॥२॥ जुहरी पोल ने लेहरिया नाम, बे वीरजिनेसर धाम । वासुपूज्य दीठां पाणंद, बे शांतिनाथ जिणंद ॥३॥ जगवल्लभ जगतनो स्वामी, निसा पोल में अंतरजामी । सहस्त्र फरणा श्रीपारसनाथ, धर्म शांति शिवपुर ने साथ ॥४॥ चिंतामणी पारसदेव, सुर इन्द्र करे सहु सेव । पाडे शेखने च्यार विहार, वासुपूज्य शीतल जयकार ॥५॥ शांतिनाथ ने अजित जिणंद, मुख जोतां कर्म निकंद । देवसा ने पाडे न्यास, चिंतामणी सांवला पास ॥६॥ धर्मनाथ जगतनो सूर, शांतिनाथ दीठां सुखपूर । तिलकसानी पोल सुथान, शांतिजिन तिलक समान ॥७॥ पोल पांजरें च्यार प्रसाद, भेटी शांति मेटो विखवाद । वासुपूज्य शीतल जिन सार, प्रभु पूजी करो भव पार ।।८।। मुंडेवानी खडकी एक, तिहां देहरा दोय विवेक । मुडेवा पारस पामी, धर्मनाथ नमु शिर नामी ॥६॥ शांतिनाथ हरण भव ताप, महाजने पांजरे आप। एक चैत्य कालूपुर दीठो, जिनशांति सुधारस मीठो ॥१०॥
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