Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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तीर्थ माला संग्रह
४५ लींमडीइं श्री शाँति जिणंद त्रिण से सात तिहां श्री जिनचन्द
दीठई अति आणंदतो जयो० ॥३॥ करणइं शीतल जिन जयकारी सतन वसोतिहां सारी जनमन
मोहनगारी जयो० ॥४॥ बिंब सतर सु शांति सोहावई बीजई देहरई मुझ मन भावई
दरीसण थी दुख जायं जयो० ॥५।। देहरा सर तिहां देहरा सरिखुपांत्रीस प्रतिमा तिहां किण निरखु
देखी मुझ मन हरख्यतो जयो० ॥६॥ संघबी पोलिंपास जगदीस प्रतिमा एकसो एक त्रीस पूरई मनह
जगीस तो जयो० ॥७॥ पीतल मई दोई बिंब विशाल प्रतिमा तेहनी अति सुखमाल
दीसई झाक झमाल तो जय० ॥८॥ ढाल:खेललव सही दोय प्रासादइ पास जिणेसर भेट्या साँमल पासनी
सुन्दर मूरत देखत सब दुख मेटयारे ॥१॥ भवियां भावे जिन वर वंदो श्री जिनवरने वंदण करतां होवई
अति आणंदरे भ० ॥२॥ त्रिणसें अठोत्तर प्रतिमा सामल पासनी पासई महावीर पासें
ब्यासी जिन वरसु वंदो मन उल्लासरे भ०॥३॥ देहरासर तिहां दोय अनोपम रूपसो वन मई काम सोवन रूप
____ रयणमें प्रतिमा दीसई अति अभिरांमरे भ०॥४॥ अजुवसा पाडामां प्रतिमा सत्तोत्तर सुख दाई पीतल मेंय श्री विमल
जिणेसर वंदो मन लय लाईरे भ० ।।५।। दोसी कुपाना पाडामांहि ऋषभ जिणेसर सोहे सुखदायक
जिनसोल सगुणतर देखी जन मन मोहे रे भ० ॥६॥ वसावा. दोयशत अठ्ठावीस शांति जिणेसर स्वामी नेऊं जिनसु
दोसी वाडई ऋषभ नमुंसिर नांमीरे भ० ॥७॥ प्रांबा दोसी ना पाडा मांहि मुनि सुब्रत जिनसोल पांचोटडीई
एकसोनई बीस ऋषभ जिणंदरंग रोल रे भ० ॥६॥
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