Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
View full book text
________________
तीर्थ माला संग्रह तंबोली वाडा मझारि, सुपास नमु सुख कारि । एकसोत्रीस सदाए प्रणमु जिन मुदा ए॥४॥ कुंभारिइं आदिनाथ, प्रतिमा एकासी साथि । देहरे कोरणी ए, तिहां प्रतिमा घणीए ॥५॥ सोल प्रतिमा सुख कंद, शांतिनाथ जिणंद । मांका महेंता तरोए पाडे सोहामणे ए॥६॥ मणी याती महावीर, मेरु तणी परिधीर । च्यालीस बिंबसुए, प्रणमु भावस्यु ए ॥७॥ तीर्थ अनोपम एह, मुझ मन अधिक सनेह । दिठे ऊपजे ऐं, संपदा संप जइं ए॥८। ढालपरबातीइंरे सेवो श्री शांतिनाथरे, हैं वंदुरे प्रतिमा तेत्रीस साथिरे । सावा.रे सांमल पास सोहामणा बिंब पंचसेरे
पासे श्री जिनवर तणारे ॥१॥ जिनवर तणा ते बिंब जाणु उपरि सत्तावन्नए, त्रेवीसमो
जिनराज वंदु मोहिउं मुझ मन्नए। सातमो जिन प्रासाद बीजे वंदोइं उलट धरी,
च्यालीस उपरि सात अधिक सोहे प्रतिमा तें भली ॥२॥ सोल समोरे शांति जिणेसर जगि जयो में सात वाडेरे,
देखी मुझ मन सुखथयो पांसठि जिनवर रे तिम वली कलिकुंड पासजी जीराउल रे पूरे वंछित आसजी पास पूरे गौतम स्वामी लब्धीनो भंडार ए, सगर कुई पांत्रीस
जिनवर पार्श्वनाथ जुहारए । हेबद पुरमां थूभ वांदुजास महिमा अति घणो,
एक मनो जे सेव सारइं पुरे मनोरथ तेहतणा वलीयार वाडेरे प्रतिमा सोहें सातरे, मूलनायक रे शांति
जिणंद विख्यातरे। जोगी वारे जागतो जिन ओवोसमो अठावन्नस्युरे
भविजन भावे नमो॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120