Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

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Page 36
________________ तीर्थ माला संग्रह २६ कहा आप दो को मैं वहां ले जा सकती हूँ। मथुरा का संघ साथ में होगा तो मुझे भय है कि मिथ्यादृष्टि देव मेरे गमन में विघ्न करेंगे । साधु बोले- यदि संघ को वहां ले जाने की तेरी शक्ति नहीं है तो हम दो को वहां जाना उचित नहीं है। हम शास्त्र बल से ही मेरु स्थित जिन चैत्यों का दर्शन वन्दन करेंगे। तपस्वियों के इस उक्त कथन को सुनकर लज्जित सो होकर कुबेरा बोली, भगवन् यदि ऐसा है तो मैं स्वयम् जिन प्रतिमाओं से शोभित मेरू पर्वत का आकार यहां बना देती हूँ, वहां पर संघ के साथ आप देव-वन्दन कर लें, साधुओं ने देवो को बात को स्वीकार किया, तब देवो ने सुवर्णमय नाना रत्न शोभित, अनेक देव पारिवारित, तोरण ध्वज मालाओं से अलंकृत, जिसका शिखर छत्र-त्रय से सुशोभित है ऐसा रात भर में स्तूप निर्माण किया जो मेरू पर्वत की तरह तोन मेखलाओं से सुशोभित था, प्रत्येक मेखला में प्रतिदिग् सम्मुख पंच वर्ण रत्नमय प्रतिमाएं सुशोभित थीं, मूल नायक के स्थान पर भगवान् सुपार्श्वनाथ का बिंब प्रतिष्ठित था। प्रभात होते ही लोग स्तूप के पास एकत्र हुए और आपस में विवाद करने लगे। कोई कहते थे वासुकि नाग लंछन वाला स्वयंभू देव हैं तब दूसरे कहते थे शेषशायी भगवान् नारायण हैं इसी प्रकार कोई ब्रह्मा, कोई धरणेन्द्र (नागराज), कोई सूर्य, तो कोई चन्द्रमा कहकर अपनी जानकारी बता रहे थे । बौद्ध कहते थे यह स्तूप नहीं किन्तु 'बुद्धाण्डक' है, इस विवाद को सुनकर मध्यस्थ पुरुष कहते थे वह दिव्य शक्ति से बना है, और दिव्य शक्ति से ही इसका निर्णय होगा, तुम आपस में क्यों लड़ते हो । अपने-अपने इष्टदेव को वस्त्र पटपर चित्रित करवा कर निज-निज मंडली के साथ ठहरो, जिसका स्तूप स्थित देव होगा उसीका चित्र पट रहेगा, शेष व्यक्तियों के पट्ट-स्थित देव भाग जायेंगे। जैन संघ ने भी सुपार्श्वनाथ का चित्रपट बनवाया, बाद में अपनी मण्डलियों के साथ चित्रित चित्रपटों की पूजा करके सब धार्मिक संप्रदाय वाले उनकी भक्ति करते । अपने-अपने पट सामने रखकर नवम दिन की रात्रि का समय था, सभी संप्रदायों के भक्तजन अपने-अपने ध्येय देव के गुणगान कर रहे थे । बराबर अर्ध रात्रि व्यतीत हुई तब प्रचण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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