Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor
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तीर्थ माला संग्रह
हाल:संघ भक्ति संघवी करे, लाहण द्य बहु लोक । मन मनोरथ सवि फल्याए, याचक जन संतोष ॥प्रा०॥
देइ रूपे आरोक ।।मनो०॥२४॥ यात्रा करी पाछा वल्याए, आव्या अहिम्मदावाद ।म०॥ चिंतामणि वीरादि कू ए प्रणमीजे प्रासाद ॥म०॥२५॥ जंगम तीरथ जागतो ए, विजयसिंह सूरिंद ।।म०॥
आचारजपरण प्राविया, वांद्या मन आनंद ॥म०॥२६॥ सिद्धपुरे सरोतरे रोह मुडथला गाम म०॥ कास द्रह ने इनांदिइ ए ल्ये वंदु जिन नाम ।।म०॥२७।। अर्बुद शिखर अचल गढे, श्री जुगादि करूं सेव ।।म०॥ कुमर. विहार निहालिइ ए, देलवाडे बहु देव ॥२८।। विमल वस्तग नां देहुरां ए देखत त्रपति न होय ।।म०॥ मानव गति मानइ नहीं सुरगति साचीए सोय ।।२।। अर्बुद यात्र करी वल्यो ए शिवपुर आव्यो संघ ॥मनो०।। तीर्थ पूज करी तिहाए पुहतो नियपुर रंग ॥३०॥ ढाल:इणपरि कुसले जिनधर आवइ, मोती थाल वधावइ जी। सोहव मिलि-मिलि मंगल गावहिं, धन जे यात्र करावइ जी ॥३१॥ नेमीदास सामीदास, सोभागी, विमलदास कुल दीवो जी। कृष्णदास धर्मदास मनोहर, सपरिवार चिरजीवो जी ॥३२॥ इम तीरथ संखेपइ कहिया विच विचे के पणि रहिया जी। प्रभु गुण मुक्त हियडइ गह गहिया, सुरनर किन्नर महिया जी ॥३३॥ तीरथमाल भगइ जे भावइ, ते सुख संपद पावइ जी।
रोग सोग नेडा तस नावइं शिवसुन्दरि घर ल्यावइ जी ॥३४॥ कलश:इय राग नाग रसेंदु १६८६ वरसइ चैत्य परिपाटी करी। भव भीड भागी, सुमति जागी त्रिजग जय ललना खरी ॥ तपगच्छपति विजयदेव मुरिणवर विजयसिंह मणोरमो। जस सोम कोविद सीस पभगइ विमलगिरि अहनिसि नमो ॥३५॥
॥ इति श्री चैत्य परिपाटी स्तवनं ।।
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