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तीर्थ माला संग्रह
वान की पूजा करूँगा । राजा बाहुबलि दूसरे दिन बडे ठाठ बाट से भगवान की तरफ गया । परन्तु उसके जाने के पूर्व ही भगवान वहाँ से विहार कर चुके थे । अपने पूज्यपिता ऋषभ को निवेदित स्थान तथा उसके आस-पास न देख कर बाहुबली बहुत ही खिन्न हुआ और वापस लौट कर भगवान रात भर जहाँ ठहरे थे उस स्थान पर एक बड़ा गोल चक्राकार स्तूप बनवाया और उसका नाम 'धर्मचक्र' दिया । भगवान ऋषभदेव छद्मावस्था में एक हजार वर्ष तक विचरे ।
आवश्यक निर्युक्ति की उपर्युक्त गाथा के विवरण में चूरिंग - कार नं धर्मचक्र के सम्बन्ध में जो विशेषता बताई है वह निम्न लिखित है ।
'जहाँ भगवान ठहरे थे उस स्थान पर सवं रत्नमय एक योजन परीधि वाला, जिसपर पांच योजन ऊँचा ध्वज दण्ड खड़ा है, धर्मचक्र का चिन्ह बनवाया ।'
बहली डंबइल्ला जोगग विसो सुवण्ण भूमि न । आहिंडिना भगव आ उसभेरण तवं चंरतेणं ॥ ३३६ ॥ बहली जोग पल्ह गाय जे भगवया समरणु सिट्ठा । अन्ते यमिच्छ जाईते तइना भद्दया जाया ||३३७|| तित्थयराणं पढमो उसभरिसि विहरि प्रो निरूव सग्गो । अट्ठाव ओरण गवरो अग्ग (य) भूमि जिग वरस्स ।। ३३८ ||
छ उमत्थ घरि श्राश्रो वास सहस्सं तम्रो पुरिम ताले ।
गग्गो हस् य हेट्ठा उपरणं फग्गुण बहुले एक्कार सीइ ग्रह उप्पण्णं मि भरते महव्वया
केवरणं नाणं ।। ३३६ ।। अठमेण भत्तेणं ।
पंच पण्णव ॥ ३४० ॥ |
अर्थात् — बहली (ब्ल्ख - बाख्तरिया) ग्रडंब इल्ला ( अटक - प्रदेश ) यवन (यूनान) देश और सुवर्ण भूमि ( ब्रह्म प्रदेश ) इन देशों में भगवान ऋषभ ने तपस्वी जीवन में भ्रमण किया । बल्ख, यवन, पल्हग देश वासी भगवान के अनुशासन से क्रौर्य का त्याग कर भद्र परिणामी
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