Book Title: Tirth Mala Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Parshwawadi Ahor

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ २४ तीर्थ माला संग्रह ही भगवान महावीर का स्मारक मंदिर आगे जाकर जैनों का " चमरोत्पात" १ नामक तीर्थ बन गया, जिसका श्रुतकेवली भद्र बाहु स्वामी ने आचारांग नियुक्ति में स्मरण-वन्दन किया है । चमरोत्पात तीर्थ, आज हमारे विच्छिन्न (भूले हुए) तीर्थों में से एक है, यह स्थान आधुनिक मिर्जापुर जिले के एक पहाड़ी प्रदेश में था, ऐसा हमारा अनुमान है । (८) शत्रुज्जय तीर्थ - शत्रुञ्जय आज हमारा सर्वोत्तम तोर्थ माना जाता है । इसका माहात्म्य गाने में शत्रुञ्जय माहात्म्यकार ने कोई उठा नहीं रक्खा, यह पर्वत भगवान ऋषभदेव का मुख्य विहार क्षेत्र और भरत चक्रवर्त्ती का सुवर्णमय चैत्य निर्माण का स्थान माना गया है । परन्तु हमारे प्राचीन साहित्य सूत्रादि में इसका विशेष विवरण नहीं मिलता, ज्ञाता धर्मकथाङ्ग के सोलहवें अध्ययन में पांच पांडवों के शत्रुञ्जय पर्वत पर अनशन कर निर्वाण प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है, इसके अतिरिक्त अन्तकृद् दशांग सूत्र में भगवान नेमि - नाथजी के अनेकों साधुत्रों के शत्रुञ्जय पर्वत पर तपस्या द्वारा मुक्ति पाने का वर्णन मिलता है, इससे इतना तो सिद्ध है कि शत्रुञ्जय पर्वत हजारों वर्षो से जैनों का सिद्ध क्षेत्र बना हुआ है और यह स्थान भगवान ऋषभदेव का विहार स्थल न मानकर नेमिनाथ का तथा उनके श्रमणों का विहार क्षेत्र मानना विशेष उपयुक्त होगा । आवश्यक निर्युक्ति, भाष्य, चूरिंण, आदि से यह प्रमाणित होता है कि भगवान् ऋषभदेव उत्तर-पूर्व, पश्चिम भारत के देशों में ही विचरे थे, दक्षिण भारत में अथवा सौराष्ट्र भूमि में वे कभी नहीं पधारे, जैन शास्त्रोक्त भारतवर्ष के नक्शे के अनुसार आज का १. चमरेन्द्र ने शक्रेन्द्र पर चढ़ाई करने के विषय पर भगवती सूत्र में विस्तृत वर्णन मिलता है, परन्तु उसमें चमरोत्पात के स्थल पर स्मारक बनने और तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध होने की सूचना नहीं है, मालूम होता है भगवान महावीर के प्रवचन का निर्माण होने के समय तक वह स्थल जैन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध नहीं हुआ था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120