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तीर्थं माला संग्रह
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वर्त पर्वत पर अनशन किया है । प्राचीन विदिशा नगरी ( आज का मिलसा) के समीप पूर्वकाल में "कुजरावर्त" तथा " रथावर्त" नामक दो पहाड़ियां थीं । वज्रस्वामी ने इसी रथावर्त नामक पर्वत पर अनशन किया होगा, और वही "स्थावर्त" पर्वत जैनों का प्राचीन तीर्थ होगा, ऐसा हमारा मानना है ।
(७) चमरोत्पात
भगवान महावीर छद्मस्थावस्था के बारहवें वर्ष में वैशाली को तरफ से विहार करते हुए सूं सुमार पुर नामक स्थान के निकट वर्ती उपवन में अशोक वृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ थे, तब चमरेन्द्र नामक असुरेन्द्र वहाँ आया और महावीर की शरण लेकर स्वर्ग के इन्द्र शक्र पर चढ़ाई कर गया और सुधर्मा सभा के द्वार तक पहुँच कर शक को डराने धमकाने लगा । शकेन्द्र ने भी चमरेन्द्र को मार हटाने के लिए अपना वज्रायुध उसकी तरफ फेंका, आग की चिनगारियां उगलते हुए वज्र को देख कर, चमर प्राया उसी रास्ते भागा । शक्र ने सोचा चमरेन्द्र यहां तक किसी भी महर्षि तपस्वी को शरण लिये बिना नहीं श्रा सकता, देखें यह किसकी शरण ले आया है | इन्द्र ने अवधि ज्ञान से जाना कि चमर महावीर का शरणागत बनकर आया है और वहीं जा रहा है, वह तुरन्त वज्र को पकड़ने दौड़ा, चमरेन्द्र अपना शरीर सूक्ष्म बनाकर भगवान महावीर के चरणों के बोच घुसा, वज्र प्रहार होने के पहले ही इन्द्र ने वज्र को पकड़ लिया । इस घटना से सूं सुमार पुर और उसके आस-पास के गांवों में सनसनी फैल गई, लोगों के झुण्ड के झुण्ड घटना स्थल पर आये और घटना की वस्तुस्थिति को जानकर भगवान महावीर के चरणों में झुक पड़े। भगवान महावीर तो वहां से विहार कर गए, परन्तु लोगों के हृदय में उनके शरणा गत रक्षकत्व की छाप सदा के लिए रह गई, और घटना स्थल
भगवान महावीर की
उसे बड़ी श्रद्धा से
पर एक स्मारक बनवाकर शरणागत वत्सल मूर्ति प्रतिष्ठित की । उस प्रदेश के श्रद्धालु लोग पूजते तथा कार्यार्थी यात्रिकगण सार्थवाह आदि अपनी यात्रा की निर्विघ्नता के लिए भगवान का शरण लेकर आगे बढ़ते थे यह
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