Book Title: Thulibhaddni Shilveli Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 5
________________ ( ४ ) वियोगने, रणिधरलुविपेोगापाएी परराने न्नेन,बसपउन वसीयां उसश शरोननें हेजीने,खवयोपिघसीयाराचा लिंउ उटीतटउसरी,गिरिधरनासी एमोएनी मंत्र मिशेधी,घानेही वासी। ततयोयूरोयो, हमोतीनो हार इंटरनी गति यासती,त्रएय रत्नन राण बाजेहलरागाहाथीया,नाजेशिर छार एमषता ते सजवा थर्छ, समने घिःडा रारारा डंयुनो उसजीओरनो,हाथे सोना नोयूरोपमोहनगारी प्रेममा,रस वाघ्यो होण्यापीर तिबउवाली सछ,शोवेश एगाथूसिमरते हेजता, मोहयातेपी वार ॥१० हवे तेहरिएपक्षी, माविग्यो घर रीनेहपपीन पयोधरणाशमां, लषो पऽयो। तेहपए नित्य नवसी कीग उरे, नित्यन|| Jain Educ blona International For Personal and Private Use Only www.jainelllary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 90