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-सुनकर सरल हृदय पिघल जाय तो आश्चर्य ही क्या ? पाषाणमय हृदय का भी पिघलकर मोम बनना अस्वाभाविक ही है । आपकी जीवनी कितनी अद्भूत घटना से संघटित है वह प्रस्तुत जीवनी का पठन-पाठन, श्रवण - मनन आदि द्वारा ही अवगत हो सकेगा । महामना पूज्यश्री की जीवनी के सम्बन्ध में बहुत छान बीनकर लेखक महानुभावने अपने सम्यक्त्व का परिचय दिया है । तदर्थ वह महान् प्रशस्य के साथ महा आदरणीय भी है । लेखक के परिचय में—शर्माजी श्रीमाली ब्राह्मण है । आप का अभ्यास हिन्दी साहित्य के साथ अंग्रेजी का भी है । आप बहुत वर्षों से अध्यापन कार्य के साथ गोमाता व जनता की सेवा में आन्तरिक हृदय से दक्ष रहा करते है । आप की लेखनशैली में प्रस्तुत लेख पूर्णतः परिचायक होगा । शर्माजी द्वारा लिखित " तत्त्ववेत्ता " को पढ कर मुझे अमन्दानन्द - संदोह में डूब कर कुछ लिखना ही पडा । पाठक गण ! • अवश्य पढ कर लाभ उठावें ।
पं. कृष्णदेव शास्त्री न्या. व्या० आचार्य ( विहारी )
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