Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 31
________________ गणिपद और पंन्यासपद : १९ : था | पंन्यासजी महाराज को वीर के उपाश्रय के मुख्य मुख्य श्रावकने आकर के कहा कि आप हितविजयजी को गणिपद से अलंकृत कर दीजिये | आप के हाथ की बात है । आप चाहे तो दे सकते है इस प्रार्थना को अवश्य स्वीकार कर मुहूर्त भी निकाल दीजीये | श्री संघ की साग्रह प्रार्थना को स्वीकार करके आपने आगामी वसंत पञ्चमी का शुभ मुहूर्त्त भी निकाल कर दे दिया | अब क्या था ? सारा संघ नाच उठा । वीर के उपाश्रय में अब तो बडी बडी तैयारियां होने लगी । रोज प्रभावना का कार्यक्रम चालू हो गया । आखिर वह शुभ दिन भी आ पहुंचा । संवत् १९३२ के माघ शुक्ला पञ्चमी के दिन सुबह ११ || बजे विजय मुहूर्त्त में श्री हितविजयजी महाराज को पंन्यासी उम्मेदविजयजी महाराजने अमदाबाद के श्री संघ के समक्ष गणिपद से विभूषित कर दिया। अब आप हितविजयजी गणि के नाम से सम्बोधित होने लगे । इसके -साथ आपका यश भी अब तो और भी अधिक फैलने लगा । अब आपने पंन्यासी उम्मेदविजयजी महाराज के साथ ही विहार करना प्रारम्भ किया । ग्रामों ग्राम विहार करते हुए भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुए विशेष रूपेण धर्म का प्रचार करते हुए आप उपरियालाजी पधारें । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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