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तत्ववेत्ता
लिये खोल सांसारिक जीवों के हितार्थ कल्याण का मार्ग निर्विघ्न कर दिया |
आपने अपने पूज्य श्री दादा गुरुजी के गुरुभ्राता उग्र तपस्वी श्री विवेकविजयजी (दुधाधारीजी) महाराज के सदुपदेशों का प्रचार किया । आप यहाँ उपरोक्त महाराज के ही उपाश्रय में बिराजे । यहां श्री विवेकविजयजी के पट्ट (गद्दी ) की पुनः सुव्यवस्था श्री संघ द्वारा करवाई। इस गद्दी का महान् प्रभाव है, जो तेरापंथी भी विवाह आदि मांगलिक काम के समय सर्व प्रथम यहाँ प्रणाम कर श्रीफल चढाते है ।
पूज्य विवेकविजयजी महाराज मुख्य रूप से मेवाड के राजनगर के कुलगुरु जाति महात्मा थे। आप जब विवाह करने जा रहे थे तब आपको किसीने इस के लिये कुछ भला-बुरा कहा | यह आप से सहन नहीं हुआ । और इसके फल स्वरूप उसी समय आपने संसार के मोह को त्याग कर दीक्षा ले ली। आपके दीक्षागुरु श्री विजयजी महाराज थे । दीक्षा काल से ही आपने अपना आहार केवल दूध ही रखा। इसी कारण से आपका नाम दुधाधारीजी के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ । आपका बहुत काल इसी प्रान्त के साथीया नामक ग्राम के आसपास के ग्रामों में ही बीता । वहाँ भक्तोंने सभी प्रकार की व्यवस्था कर दी थी ।
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