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ਸਾਕਦੇ
ही रहना विशेष पसंद करते थे। चूं कि गाँववालों की सरल श्रद्धा-भक्ति होती है । और उन में शहरवालों की अपेक्षा अधिक प्रेम भी होता है ।
आप के इन गुणों से संसार के काफी जीवोंने लाभ उठाया, जहाँ तक भी हो सका, आपने प्रत्येक सत्पुरुष को संतुष्ट करने की ही कोशिश की। इतना ही नहीं बल्कि आपने साधु समुदाय पर भी काफी व्यक्तित्व जमाया था । आपका हर एक व्यक्ति पर अच्छा प्रभाव पडता था । कारण कि स्वयं बहुत सरल थे, गंभीर और उदार भी पूरे थे । इस लिये लोहचुम्बक की तरह विरोधी को भी आकर्षण कर लेते थे । अथाग पाण्डित्य के साथ आप की वाणी बडी तेजस्वी और मधुर थी, जिस का काफी मुनिराजों ने भी लाभ उठाया था । आपने कई मुनिराजों को जिन का पहले भी विवरण आचूका है, शेष का निम्न प्रकार यहाँ दिया जाता है ।
घाणेराव (मारवाड) में मुनिराज श्री दयाविमलजी को बडे योग करवा करके आपहीने पन्यास पद से विभूषित किया था । मुनि लक्ष्मीविमलजी को पुनरोद्धार कर शासनमान्य । किये। आचार्य श्रीमद्विजय भ्रातृचंद्रसूरीश्वरजी ( भायचंद जी) महाराज को शिवगंज राजस्थान में आपने आचार्यपदवी से
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