Book Title: Tattvavetta
Author(s): Pukhraj Sharma
Publisher: Hit Satka Gyanmandir

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Page 56
________________ : ४४ : तत्त्ववेता 1 के पधारें । बडी धूमधामपूर्वक यहाँ के शान्तिनाथ भगवान के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई, जिस में काफी आय हुई। पुनः वोराट के गाँवों में पर्यटन करते हुए घाणेराव आकर सं. १९८२ का चौमासा किया। इसके बाद १९८३ का चौमासा खुडाला किया। बाद में देसूरी पधारे । यहाँ काफी लम्बे समय से पधारने से संघ के आग्रहवश १९८४ का चौमासा ठा लिया । इस चौमासा में बडा ठाठ रहा और समय पर श्री पार्श्वनाथजी के मंदिर की तथा चौमुखजी के प्रासाद की उत्साहपूर्वक प्रतिष्ठा करवाई । प्रतिष्ठा के समय काफी आय हुई। लोग हर्ष से नाच उठे थे । गत वर्षों में क्रमशः मणिविजयजी, प्रतापविजयजी, रत्नविजयजी, अमृतविजयजी, कमलविजयजी, कल्याणविजयजी, हिम्मत विजयजी, गुमानविजयजी नामक साधु आपके नवीन शिष्य बने थे । इन शिष्यों की कहाँ और कब दीक्षा हुई इस सम्बन्धी विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है । केवल हिम्मतविजयजी की ही प्राप्त है। आप कुम्भलगढ जीले के देलवाडा ग्राम के निवासी है और पिताजी का नाम गुलाबचंदजी और माता का नाम पनाबाई है । आप दो भाई है। बडे आप है । छोटे भाई का नाम मोहनलालजी है । आप जाति के वीशा ओसवाल लोढा गोत्र के है । आपकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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