________________
:५२:
__ तत्त्ववेत्ता पधारकर आपने अपने ज्ञानमंदिरकी उन्नति की ओर ध्यान देना शरु किया । पुराने ग्रन्थों के संग्रह को बढाया । इसी निमित्त आपने सं. १९६९ का चातुर्मास घाणेराव में ही किया। इस चौमासा में आपने ज्ञान-आराधना सम्बन्धी खूब प्रचार कर ज्ञानमंदिर की उन्नति की।
ठाठपाट के साथ चातुर्मास समाप्त होने पर आपको वंदन करने के लिये पोसालियानिवासी श्रावक आये और आगामी चातुर्मास के लिये आग्रह भी किया। आपने प्रेमवश स्वीकृति दे दी।
समय पर घाणेराव से विहार कर अनेक ग्रामों में घूमते हुए सीधे पोसालिया पहुंचे। बडे आडम्बर के साथ संघ ने नगरप्रवेश कराया। बडी धामधूम से चातुर्मास सम्पन्न हुआ । यहाँ आप के उपदेश से एक देवकुलिका नूतन बनवाई गई। मंदिर तथा देवकुलिका की प्रतिष्ठा भी आपके करकमलों द्वारा की गई । यहाँ से विहारी बनें।
आपने इन चौमासा के पश्चात् १९७१ से ७६ तक छ चातुर्मास क्रमशः दो मंडार में, दो पीडवारा में और दो सिरोही में किये । यहाँसे आपको पुनः घाणेराव लौटना पड़ा, क्यों कि अब तो आपके हृदय में ज्ञानमंदिर का काम सवाया
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com